इसलिए मनाया जाता है छठ पर्व, जानिए वो लोककथाएं

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    -सीमा कुमारी

    लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja)  शुरू हो चुका है। यह पर्व हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है और इसलिए इसे ‘छठ पर्व’ (Chhath Puja) कहा जाता है। यह पर्व उत्तर भारत सहित देश के विभिन्न हिस्सों में पारंपरिक विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। कठिन नियम-निष्ठा के कारण छठ को सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। यह त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत ‘नहाय-खाय’ के साथ होती है।

    इस त्योहार पर छठी मैया और सूर्यदेव की उपासना की जाती है। छठ के त्योहार पर महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि और सुहाग व संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं। इस लोकआस्था के पर्व से बहुत सी लोकथाएं जुड़ी हैं। आइए जानें लोक कथाएं- 

    पौराणिक लोककथा के अनुसार, लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया था और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

    कर्ण से जुड़ी सूर्य देव की पूजा की कहानी

    एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा किये थे। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन कई घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य देव की अराधना किया करते थे और उन्हें अर्घ्य देते थे।

    एक लोककथा के मुताबिक, राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया और राजा की पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र तो हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।

    उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। मान्यता है तभी से मानस कन्या देवसेना को देवी षष्ठी या छठी मैया के रूप में पूजा जाता है।