नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: होलिका दहन (Holika Dahan 2024) के दूसरे दिन आज रंग-बिरंगों रंगों से सजा त्योहार होली है इस दिन को मनाने की शुरुआत राधा कृष्ण के रंगों से होली खेलने के उत्सव के रूप होता है। इस दिन के मौके पर आज जहां पर सभी एक -दूसरे को रंग लगाकर गुलाल लगाते है तो वहीं पर अपनों को मिठाईयां भी बांटते है। इस त्योहार को बड़ी होली या धुलंडी के रूप कहा जाता है।
बड़ी होली के है कई नाम
आपको बताते चलें, इस होली को धुलेंडी के रूप में जाना जाता है तो वहीं पर कई जगहों पर धुलेंडी को धुलंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन को लेकर धुलेंडी चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है और पंचमी तक चलता है. धुलेंडी पांच दिवसीय त्योहार है. इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य होली की तरह ही प्रेम, उल्लास, एकता और भाईचारा है. धुलेंडी के पांच दिनों में हर कोई अपने दोस्त, मित्र, रिश्तेदार और दुश्मन के भी घर जाकर उससे गले मिलकर, गिले-शिकवे दूर करते है और रंग-गुलाल लगाकर उनके जीवन के लिए मंगल कामनाएं करते है।
रंगपंचमी तक रहता है त्योहार
होली से पांच दिनों के लिए इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है तो वहीं पर इसे लेकर कई बातें प्रचलित है जिनके बारे में जान लेना जरूरी है।
धुलेंडी पांच दिन तक प्रतिपदा तिथि से पंचमी तक चलने वाला प्रेम, उल्लास, एकता और भाईचारा का त्योहार है.
होलिका दहन के पश्चात् प्रतिपदा को धुलेंडी पूजन कर माता-पिता से भी आशीर्वाद लिया जाता है.
फिर टोली बनाकर ढोलक अथवा मृदंग बजाते-गाते चल समारोह निकाला जाता है.
इस दौरान मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों को रंग-गुलाल लगाकर गले मिलते है.
द्वितीया, तृतीया और चतुर्थी एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देने तथा मिठाई खाने-खिलाने का विधान है.
रंग-पंचमी को फिर वही किया जाता है जैसा कि प्रतिपदा धुलेंडी को किया था।.
कुछ क्षेत्रों में रंग पंचमी का त्योहार ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है.
इन पाँच दिनों में दुश्मन के घर जाकर, उससे गले मिलकर, गिले-शिकवे दूर कर उनके साथ भी होली खेली जाती है।
जानिए क्या है होली की पौराणिक कथा
इस होली पर पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी होती है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, धुलेंडी के दिन भोलेनाथ ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के प्रयास में भस्म कर दिया था। लेकिन देवी रति की प्रार्थना पर उन्होंने कामदेव को क्षमा दान देकर पुर्नजन्म दिया। महादेव ने देवी रति को यह वरदान दिया कि वह श्रीकृष्ण के पुत्री रूप में जन्म लेंगी, कामदेव के पुर्नजन्म और देवी रति को प्राप्त वरदान की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है।