क्या है ‘अग्नि नक्षत्रम’? जानिए क्यों मनाया जाता है दक्षिण भारत में यह त्योहार, और जानें इसकी तिथि व महिमा

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सीमा कुमारी

‘अग्नि नक्षत्रम’ (Agni Nakshatram 2023) भगवान मुरुगन को समर्पित प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में अत्यधिक उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से तिरुत्तानी, पलानी, पलामुथिरसोलई के मुरुगन भगवान की मंदिरों में पूरी भव्यता एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष ‘अग्नि नक्षत्रम’ 2023 का समापन 29 मई सोमवार को है।

पंचांग के अनुसार, प्रत्येक नक्षत्र की 4 तिमाहियां होती हैं और अग्नि नक्षत्र तब सेलिब्रेट किया जाता है, जब सूर्य कृतिका नक्षत्र से होकर गुजरता है। साथ ही सूर्य भरणी नक्षत्र के तीसरे और चौथे चरण से गुजरकर जब रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में प्रवेश करता है, तब इस त्योहार की शुरुआत होती है। ‘अग्नि नक्षत्रम’ 14 दिवसीय उत्सव है, जो मई के महीने में मनाई जाती है। आइए जानें इस त्योहार का तिथि व महत्व-

तिथि

तमिलनाडु का ‘अग्नि नक्षत्रम’ त्यौहार 14 दिनों तक मनाया जाता है। इस बार यह पावन पर्व 4 मई, गुरुवार से शुरू हो चुका है। इसका समापन 29 मई, सोमवार को होगा। ‘अग्नि नक्षत्रम’ इकलौता त्योहार है, जो भारतीय हिंदुओं द्वारा मई के महीने में मनाया जाता है।

पूजा विधि

इस दौरान पवित्र पहाड़ी गिरि वालम की सुबह-शाम ‘प्रदक्षिणा’ करने का विधान है। कहते हैं, ऐसा करने से यहां पर उगने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों की सुगंध अच्छे स्वास्थ्य के साथ, मन को शांति प्रदान करती है। प्रदक्षिणा के दौरान महिलाएं वहां पाए जाने वाले भगवान मुरुगन के प्रिय फूल कदंब के फूलों से सजाती हैं। इसके अलावा, ‘अग्नि नक्षत्रम’ के समय हर दिन मंदिर में भगवान मुरुगन का प्रतिदिन जल से अभिषेक किया जाता है। इस जल को एकत्र करके अंतिम दिन, सभी भक्तों के बीच इसे बांटा जाता है। साथ ही, इस जल को मंदिरों और कुओं में गिराना बेहद शुभ माना जाता है। हालांकि, कुछ भक्त इस तीर्थ जल को अपने घर भी ले जाते हैं।

धार्मिक महत्व

‘अग्नि नक्षत्रम’ का पावन त्योहार भगवान मुरुगन के श्रद्धालुओं के लिए काफी महत्व रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान मुरुगन देवी पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। उन्हें योद्धा भगवान के रूप में भी जाना जाता है। भगवान मुरुगन को हिंदू धर्म में ‘स्कंद’, ‘कार्तिकेय’ और ‘सुब्रह्मण्यम’ आदि कई नामों से जाना जाता है। इस दौरान मुरुगन भगवान की आराधना करने से समृद्धि, कल्याण और सफलता का आशीर्वाद मिलता है। हालांकि कुछ लोग इस अवधि को अशुभ भी मानते हैं। ऐसे में कोई भी शुभ काम करने, यात्रा करने या पैसे की लेनदेन से बचने की कोशिश करते हैं।

‘अग्नि नक्षत्रम’ की अवधि को स्पष्ट रूप से भरणी नक्षत्र की तीसरी और चौथी तिमाही के माध्यम से सूर्य की यात्रा के रूप में परिभाषित किया गया है, तारा कृतिका के सभी चार तिमाहियों और अंत में रोहिणी तारे की पहली तिमाही। इस काल को ‘कर्तरी’ या ‘कथिर’ के नाम से भी जाना जाता है। भारत के दक्षिणी राज्यों में लोग विशेष रूप से मानते हैं कि अग्नि नक्षत्रम के 21 दिन की अवधि अशुभ होती है। माना जाता है कि इस दौरान की गई कोई भी यात्रा फलदायी नहीं होती, रोग ठीक होने में अधिक समय लगता है, इस दौरान दिया गया पैसा वापस नहीं मिलता और ऐसी ही अन्य अप्रिय घटनाएं भी होती हैं। एक आम धारणा है कि प्राचीन काल में भी, अग्नि नक्षत्र के समय होने वाली तीव्र गर्मी की लहर के कारण, इस अवधि को शुभ कार्यों को करने के लिए नहीं चुना गया था।