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    -सीमा कुमारी

    हर साल सावन महीने के पूर्णिमा के दिन ‘रक्षा बंधन’ (Raksha Bandhan) का पवित्र त्योहार समूचे देशभर में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल 11 और 12 अगस्त दोनों ही दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। भाई-बहन के इस पावन पर्व का बहुत अधिक महत्व है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि राखी के त्योहर की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानें रक्षाबंधन की पौराणिक कथा-

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शिशुपाल का वध श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था। तब उनकी उंगली में चोट लग गई थी। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दी थी। यह देखकर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि वो उनकी साड़ी की कीमत जरूर अदा करेंगे। फिर जब महाभारत में द्युतक्रीड़ा के दौरान युद्धिष्ठिर द्रौपदी को हार गए थे। 

    तब दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीता था। दुशासन, द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया था। यहां द्रौपदी का चीरहरण किया गया। सभी को मौन देख द्रौपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया। उन्होंने कहा, ”हे गोविंद! आज आस्था और अनास्था के बीच युद्ध है। मुझे देखना है कि क्या सही में ईश्वर है।”

    उनकी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने चमत्कार किया। वो द्रौपदी की साड़ी को तब तक लंबा करते गए जब तक दुशासन थक कर बेहोश नहीं हो गया। इस तरह श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की राखी की लाज रखी।

    एक कथा इतिहास का यह भी है कि, सिकंदर पूरे विश्व को फतह करने निकला और जब भारत आया तो उसका सामना भारतीय राजा पुरु से हुआ। राजा पुरु बहुत वीर और बलशाली राजा थे। उन्होंने युद्ध में सिकंदर को धूल चटा दी। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी को भारतीय त्योहार रक्षाबंधन के बारे में पता चला। तब उन्होंने अपने पति सिकंदर की जान बख्शने के लिए राजा पुरु को राखी भेजी। 

    पुरु आश्चर्य में पड़ गए, लेकिन राखी के धागों का सम्मान करते हुए उन्होंने युद्ध के दौरान जब सिकंदर पर वार करने के लिए अपना हाथ उठाया तो राखी देखकर ठिठक गए और बाद में बंदी बना लिया। दूसरी ओर बंदी बने पुरु की कलाई में राखी को देखकर सिकंदर ने भी अपना बड़ा दिल दिखाया और पुरु को उनका राज्य वापस कर दिया।