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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: अक्सर धार्मिक कैलेंडरों और तस्वीरों में मां लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का पैर दबाते हुए दिखाया जाता है। मां लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी भी हैं। कहते हैं, जहां नारायण रहते हैं वहीं साक्षात लक्ष्मी जी भी निवास करती हैं। शास्त्रों में भी यह उल्लेख है कि क्षीर सागर में भगवान नारायण शेषनाग की शय्या पर विराजमान होते हैं और देवी लक्ष्मी उनके चरण समीप उनके पैर दबाती हैं।

इस बारे में कुछ लोगों के मन में ये संशय बना हुया रहता है कि आखिर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों को क्यों दबाती हैं। आखिर इसके पीछे धार्मिक कारण क्या हो सकते हैं। ये तमाम जिज्ञासा किसी के भी मन को विचलित कर सकती हैं। आइए जानें आखिर इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवर्षि नारद ने मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के चरण दबाते देखा। तो यह सवाल उनके मन में उठा कि मां लक्ष्मी आखिर प्रभु के चरण क्यों दबा रही हैं? उनका मन यह जानने के लिए व्याकुल हुआ तो उन्होनें मां लक्ष्मी से पूछ लिया। इस पर मां लक्ष्मी जी ने नारद जी के सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि ये सारी सृष्टि ग्रहों के अधीन है।

फिर वो देवता ही क्यों न हों, मां लक्ष्मी ने आगे बताते हुए कहा कि महिलाओं के हाथों में ग्रहों के गुरु बृहस्पति निवास करते हैं और पुरुषों के चरणों में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य का वास होता है और जब देव और दानवों को मिलन होता है तो उस जगह समुंद्र मंथन के अमृत समान धन की अपार वर्षा होती है। जिस प्रकार अमृत अनमोल है उसी प्रकार जगत में धन-वैभव भी अनमोल है। बिना इसके संसार में कोई भी चीज अधूरी है। यही कारण है कि शास्त्रों में मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के पैर दबाते हुए दर्शाया गया है।

दूसरी कथा के अनुसार यह माना जाता है कि मां लक्ष्मी की बहन ठीक उनके स्वरूप के विपरीत हैं। जहां धन की देवी मां लक्ष्मी भौतिक सुखों का आशीर्वाद देने वाली हैं। वहीं, उनकी बहन अलक्ष्मी धन, वैभव और सुखों का हरण करने वाली हैं। अलक्ष्मी अपनी बहन लक्ष्मी जी से ईर्ष्या का भाव रखती हैं और जहां जाती है उस जगह दरिद्रता का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए जगत के संचालन के कारण मां लक्ष्मी सदैव विष्णु भगवान के पास बैठकर उनके चरण दबाती हैं और बैकुंठ की शोभा को संभाले रखती हैं।