भगवान जगन्नाथ को क्यों कराया जाता है 108 घड़ों के जल से स्नान, और जानिए क्यों 15 दिनों तक बंद रहते हैं दर्शन के लिए कपाट

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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को प्रति वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होती हैं। इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई को शुरू होगी।

    मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने वाला श्रद्धालु सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली होता है और उसे 100 यज्ञ करने के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती हैं। उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल आषाढ़ में भव्य जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल रथ यात्रा की शुरुआत 01 जुलाई से होगी।

    भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का ही एक रूप जगनाथ है। जगन्नाथ का अर्थ होता है- जग का स्वामी। जगन्नाथ रथ यात्रा को हर साल हर्षोल्लास के साथ निकाला जाता है। इस रथ यात्रा में हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल होते हैं। सनातन धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बड़ा महत्व है। जगन्नाथ यात्रा निकलने के 15 दिन पहले मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। आइए जानें इसका कारण –

    सहस्त्रधारा स्नान के बाद कुछ ऐसा होता है भगवान जगन्नाथ के साथ सनातन परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को एक 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान को ‘सहस्त्रधारा स्नान’ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि 108 घड़ों के ठंडे जल से स्नान करने के बाद तीनों देवता बीमार हो जाते हैं। ऐसे में वे एकांतवास में चले जाते हैं और उन्हें 15 दिनों तक एकांतवास में रखा जाता है। इस वजह से रथ यात्रा के 15 दिन पहले मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, ताकि तीनों देवी देवता आराम कर सके। 15 दिन बाद ठीक होने के बाद भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा एकांतवास से बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं।  तब भव्य यात्रा निकाली जाती है।