Protest of Landewadi slum citizens in Manpa

  • एसआरए की सहमति के लिए झुग्गीधारकों को गुंडों से धमकाने का आरोप

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पिंपरी. एसआरए (SRA) (झुग्गी पुनर्वसन प्राधिकरण) की योजना के तहत पिंपरी-चिंचवड शहर (Pimpri-Chinchwad City) की लांडेवाड़ी झोपड़पट्टी में झुग्गीधारकों को सहमति पत्र हासिल करने के लिए गुंडों के जरिये धमकाया जा रहा है। इसमें राजनेता, दलाल और बिल्डरों (Builders) की मिलीभगत रहने का आरोप लगाया जा रहा है। यह मामला सामने लाने के बाद भाजपा (BJP) की वरिष्ठ नगरसेविका सीमा सावले (Seema Savale) के नेतृत्व में झोपड़पट्टी वासियों ने मनपा मुख्यालय के प्रवेशद्वार पर आंदोलन (Protest) किया।

झुग्गीधारकों को पक्के मकान मिलने चाहिए, लेकिन उसके लिए अगर उन्हें डराया धमकाया जा रहा है तो उसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, यह चेतावनी सावले ने दी है। नगरसेविका सावले, आशा शेंडगे की अगुवाई में किए गए इस आंदोलन में लांडेवाड़ी झोपड़पट्टी के सैकड़ों लोग शामिल हुए। 

पिछले 30-40 वर्षों से हैं ये बस्तियां 

स्थानीय प्रशासन और संबंधित पुलिस स्टेशन को सूचित करना अनिवार्य है जहां सहमति फॉर्म भरना है। इसके अलावा, पुलिस को ऐसे सर्वेक्षणों के लिए सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। यह मांग करते हुए सावले ने एक बयान में कहा है कि पिंपरी-चिंचवड में 75 आधिकारिक और लगभग 30 अनौपचारिक झोपड़पट्टियां हैं जो मनपा, प्राधिकरण, एमआईडीसी और निजी भूमि पर बसी हैं। लगभग तीन लाख लोग अपने परिवारों के साथ वहां रहते हैं। शहर में पिछले 30-40 वर्षों से ये झुग्गी बस्तियां हैं।  अब एसआरए द्वारा उनके पुनर्वास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जबकि कुछ परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, कुछ अनुमोदन के लिए कतार में हैं। 

पुनर्वास कार्य कराने के लिए होड़ मची 

पुनर्वसन के लिए झुग्गीवासियों की लिखित सहमति परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए कानूनन तौर पर आवश्यक है। जिन्होंने शर्तों और अन्य दस्तावेजों को पूरा किया है उन डेवलपर्स को इस काम का अवसर मिलता है। कुछ राजनेताओं, जमीन दलालों और बिल्डरों के बीच इस तरह से विभिन्न मलिन बस्तियों का पुनर्वास कार्य कराने के लिए होड़ मची है।

नहीं दिया जा रहा विवरण

लांडेवाड़ी झोपड़पट्टी में सहमति पत्र देते समय एक खाली आवेदन पर हस्ताक्षर करने के लिए झोपड़ी मालिक की सख्ती की जा रही है। इसके अलावा, संबंधित परिवार को इस बात की पूरी जानकारी नहीं दी जाती है कि आवेदन क्या है, डेवलपर कौन है, उसका अनुभव क्या है, उसकी योग्यता क्या है, शिविर कहां होगा, परियोजना कितनी बड़ी है, उन घरों के रखरखाव का भुगतान कौन करेगा और घर पर कब तक कब्जा रहेगा, इस बारे में कोई विवरण नहीं दिया जा रहा है। कोई झोपड़पट्टी दादा या भाई आता है और झुग्गीधारकों को सहमति फॉर्म पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करता है। सहमति पत्र पर हस्ताक्षर इस बात की पुष्टि किए बिना किए जाते हैं कि झोपड़ी मालिक पात्र है या नहीं। इस सार्वभौमिक तस्वीर को कई झुग्गियों में देखा जा सकता है। कुछ डेवलपर्स बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन जो लोग गलत तरीके से गरीबों को गुमराह करते हैं, उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है यह भी सावले ने कहा। 

दादागिरी करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई की जाय

उन्होंने मांग की है इस तरह की दादागिरी करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई की जाय और लोगों से भी अपील की है उन्हें धमकाने वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराएं। उन्होंने यह चेतावनी भी दी है कि अगर गरीबों को डराने धमकाने की कोशिश बन्द नहीं की गई तो सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया जाएगा।