विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ होते ही देश को ‘भारत’ नाम देने की जुगत

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विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखे जाने के बाद से बीजेपी में छटपटाहट है. प्रधानमंत्री मोदी ने इंडिया शब्द को ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाइदीन से जोड़ा था. यद्यपि संविधान में ‘इंडिया दैट इज भारत’ लिखा है लेकिन संविधान लागू होने के 7 दशक बाद अब बीजेपी ‘इंडिया’ शब्द को हटाने की दिशा में पहल कर रही है. दिल्ली के प्रगति मैदान में 9 व 10 सितंबर को जी-20 बैठक के डिनर में शामिल होने के लिए तमाम पार्टियों के नेताओं को राष्ट्रपति भवन से भेजे गए निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसीडेंट आफ भारत’ लिखा गया है.

इस तरह देश को अधिकृत रूप से भारत का नाम देने की जुगत हो रही है. चूंकि संविधान में भारत शब्द का उल्लेख पहले से है इसलिए उसे कामन रखते हुए बगैर किसी संविधान संशोधन के सरकार इंडिया शब्द को हटा सकती है. सभी सरकारी दस्तावेजों व अधिकृत पत्रों में भारत लिखा जा सकता है. हालांकि विपक्षी गठबंधन के नाम इंडिया को बीजेपी ने ‘घमंडिया’ कहा लेकिन इसका असर नहीं देखा गया. संविधान के पहले अनुच्छेद में लिखा है ‘इंडिया दैट इज भारत, इज ए यूनियन ऑफ स्टेट्स यानी इंडिया जो कि भारत है, वह राज्यों का एक संघ है.

आजादी के इतने सालों से जब हमेशा प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया लिखा जाता रहा, तब तो किसी ने हंगामा नहीं खड़ा किया कि जब संविधान के मुताबिक भारत के दोनों नाम हैं, तो फिर अभी प्रेसीडेंट ऑफ भारत क्यों नहीं हो सकता? बहुत सारे लोगों का मानना है कि इंडिया भारत का मूल नाम नहीं हो सकता, मूल तो भारत ही है तो ‘भारत’ लिखने से इतना उछलना क्यों?’

अंग्रेजों के पहले तो भारत को इंडिया नहीं कहा जाता था. भले कुछ लोग भारत को इंडिया मानते रहे हों, और बहस करें कि यह तो सिंधु नदी के कारण है, लेकिन अंग्रेजों के पहले भारत के दस्तावेजों में भारत को इंडिया तो नहीं लिखा जाता था. इसलिए संविधान के इस अनुच्छेद में होना तो चाहिए था, ‘भारत दैट इंडिया’. लेकिन अब तो कुछ लोगों को भारत शब्द ही भड़का रहा है. सुर्खियों में बने रहने के लिए गैरजरूरी मुद्दे को विपक्ष देश का राजनीतिक मुद्दा बना रहा है.

मध्यवर्ग का बहुसंख्यक हिस्सा इस बहस से यह संदेश ग्रहण करेगा कि विपक्ष को भारत के मूल और उसकी संस्कृति से ही चिढ़ है. देश में लोखों के मन में आजादी के बाद से ही यह दबी इच्छा रही है कि अब भारत का नाम इंडिया नहीं होना चाहिए क्योंकि इंडिया शब्द से अपने आपमें एक गुलामी की बू है. पिछले 76 वर्षों में हजारों आम लोग ही नहीं सैकड़ों बुद्धिजीवी भी इंडिया का नाम स्थायी रूप से भारत किये जाने की मांग करते रहे हैं. संविधान सभा में भी इस निर्णय पर पहुंचने में करीब एक साल गरमा गरम बहस हुई थीं कि भारत का नाम अधिकृत रूप से क्या रखा जाए.

यह बहस एक साल तक चली और अंत में संविधान में इंडिया दैट इज भारत लिखा गया. अगर इसकी जगह भारत दैड इज इंडिया लिखा जाता तो माना जाता कि लोग बहस में इक्कीस रहे जो आजादी के बाद देश के नाम को मूलत: भारत से ध्वनित होते सुनना चाहते थे. विपक्ष को शायद लगता है कि वह इस हंगामे के जरिये भाजपा को संकीर्ण राष्ट्रवादी पार्टी साबित कर देगा.

पुराणों में भारत का उल्लेख

भारत शब्द को इस देश की मूल सांस्कृतिक अवचेतना में है. पुराणों में एक मशहूर श्लोक है- ‘इत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्र्चौव दक्षिणम. वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्तति’ यानी जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, वो भारतवर्ष है और उसमें भारत की संतानें बसी हुई हैं. मान्यता है कि दुष्यंत व शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा था. ईसा के जन्म के 100 वर्ष पूर्व जैन राजा खारवेल ने ओडिशा की हाथी गुंफा के शिलालेख में देश का नाम भारतवर्ष अंकित किया था. क्या इस अतीत से इस देश की सांस्कृतिक अवचेतना को दूर किया जा सकता है? विदेशी भले हमें कुछ कहते रहे हों लेकिन देश के सांस्कृतिक अतीत में भारत शब्द बार-बार आता है.