BJP सरकार ने की कांग्रेस सरकार की तारीफ, आर्थिक उदारीकरण की सराहना की

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सरकार (Government) कोई भी रहे, यदि वह साहस के साथ समयानुकूल अच्छे कदम उठाती है तो उसकी सराहना अवश्य की जाती है. इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पूर्व पीएम पीवी नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ की. यह प्रशंसा इसलिए की गई क्योंकि राव और मनमोहन ने भ्रष्टाचार की जड़ समझे जानेवाले लाइसेंस राज को खत्म करते हुए खुली आर्थिक नीति लागू करने और आर्थिक उदारीकरण की दिशा में ठोस, साहसिक और क्रांतिकारी पहल की.

 मोदी सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षतावाली सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ को बताया कि नरसिंहराव और मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के बाद देश में कंपनी कानून और एमआरटीपी एक्ट सहित कई कानूनों को उदार बनाया गया. मेहता ने आईडीआरए 1951 की कड़ी आलोचना करते हुए उसे प्रतिगामी और लाइसेंस राज के दिनों को प्रतिबिंबित करनेवाला बताया.

हर चीज समय के मुताबिक

सबसे पहले 1947 और 1991 की स्थितियों का अंतर समझा जाना चाहिए. जब देश आजाद हुआ था तब औद्योगिक ढांचा खड़ा करने की जरूरत थी. 50 के दशक में जापान, द. कोरिया, सिंगापुर को अमेरिका सहायता से तेजी से विकसित होने का मौका मिला. प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू की प्रथम अमेरिका यात्रा 1949 में हुई तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने भारत को कोई सहायता देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. तब भारत सरकार ने भिलाई दुर्गापुर और राउरकेला जैसे इस्पात कारखाने बनवाए लेकिन इसमें भी क्रमश: रूसी, ब्रिटिश और जर्मन सहयोग लिया. 

उस समय टाटा-बिडला घरानों को छोड़कर अन्य निजी उद्योग इतने मजबूत नहीं थे. इसलिए समाजवाद की राह चुननी पड़ी. रूस की 8 वर्षीय योजना के समान भारत में पंचवर्षीय योजना बनाई जाती रही. तब की स्थितियों का जायजा इस बात से लग सकता है कि 1952 के प्रथम आम चुनाव में मुख्य रूप से कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ही मुख्य खिलाड़ी थे. तब आचार्य कृपलानी और जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेता हुआ करते थे. आगे भी यही सिलसिला चलता रहा जिसके तहत इंदिरा गांधी ने बैंक राष्ट्रीयकरण जैसे कदम उठाए. तब देश के विकास के लिए समाजवादी समाज रचना (सोशलिस्टिक पैटर्न ऑफ सोसाइटी) को सही माना जाता था तभी भारत हैवी इले्ट्रिरकल्स (भेल) हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लि. (एचएएल) की स्थापना हुई.

अभाव में रहे देशवासी

जब तक उदार आर्थिक नीति की बयार नहीं आई थी तब तक वस्तुओं व सुविधाओं का अभाव था. उत्पादन बेहद कम था. मांग पूरी नहीं हो रही थी. टेलीफोन कनेक्शन हासिल करने और स्कूटर खरीदने के लिए महीनों ही नहीं वर्षों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी. प्रोडक्शन पर सरकारी कंट्रोल था. आज हम दुनिया के किसी भी कोने में वीडियोकॉल कर लेते हैं लेकिन तब मामूली ट्रंक काल करने के लिए घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी. सिर्फ फियेट और एम्बेसडर जैसी कारें उपलब्ध थीं वह भी इने-गिने लोगों के पास. इम्पोर्टेड चीजों का बड़ा क्रेज था. विदेशी परम्यूम, रिस्टवाच के लोग दिवाने थे. ये चीजें स्मगलिंग से आती थीं. आज की पीढ़ी सोच ही नहीं सकती कि 1991-92 के पहले की जिंदगी कैसी थी. दुनिया आगे जा रही थी और हम पीछे थे.

लाइसेंस परमिट राज

लाइसेंस-कोटा-परमिट राज में काफी भ्रष्टाचार पनपता था. नेता और अफसरों की चांदी रहती थी. स्व. राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए अफसोस जताया था कि हम केंद्र से गरीब हितग्राही के लिए 1 रुपया भेजते हैं लेकिन उसके पास सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं. 1965-66 में जबरदस्त राशनिंग थी. संसाधनों पर सरकार का ही नियंत्रण था. पीवी नरसिंह राव ने अपने अर्थशास्त्री वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सहयोग से उदार आर्थिक नीति लागू की क्योंकि यह महसूस हुआ कि निजी क्षेत्र के सहयोग के बिना तेजी से विकास नहीं हो सकता. सार्वजनिक-निजी भागीदारी शरू की गई. भूमंडलीकरण व ग्लोबल विलेज की धारणा मजबूत हुई. देशों के परस्पर व्यापार में तेजी आई. मल्टीनेशनल कंपनियों का जाल फैला. देश ने समाजवाद की घिसी-पिटी लकीर से बाहर निकलकर मुक्त अर्थव्यवस्था स्वीकार कर ली. निजीकरण से प्रतिस्पर्धा बढ़ी और विकास को पंख लग गए.