निकल रहा BJP का एजेंडा, नेहरू के बाद बापू से परहेज

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    पूर्ववर्ती जनसंघ और उसके बाद बनी बीजेपी को करोड़ों देशवासियों के बीच महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की अपार लोकप्रियता आंख की किरकिरी के समान चुभती रही. जनता पर गांधी-नेहरू के आजादी की लड़ाई में योगदान और देशसेवा का इतना प्रभाव बना हुआ था कि वह कांग्रेस को बहुमत से जिताती रही. कांग्रेस की वजह से बीजेपी कई दशकों तक सत्ता से वंचित रही. इससे बीजेपी नेताओं के दिलों में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के प्रति नफरत का गुबार बढ़ता चला गया. 

    संसदीय लोकतंत्र की स्थापना व औद्योगिकरण में नेहरू का योगदान, संतुलित विदेशनीति व गुटनिरपेक्ष आंदोलन का निर्माण, धर्मनिरपेक्षता के लिए नेहरू की प्रतिबद्धता आदि का बीजेपी के लिए कोई महत्व नहीं है. स्वाधीनता संग्राम से आरएसएस दूर रहा इसलिए उसके पास राष्ट्रीय स्तर का कोई महापुरुष नहीं है. इस मजबूरी में बीजेपी ने रास्ता निकाला और महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने और उसके नेताओं को जेल भेजनेवाले तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल से बीजेपी ने अपनापन जोड़ना शुरू किया. सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा (स्टेच्यू आफ यूनिटी) स्थापित की गई. 

    इसके निर्माण के लिए पहले देश भर के किसानों से कृषि औजारों का लोहा मंगाने की बात की गई लेकिन फिर मेड इन चाइना मूर्ति की व्यवस्था कर ली गई. बार-बार यह कहा गया कि महात्मा गांधी ने नेहरू को प्रथम प्रधानमंत्री बनाकर बड़ी गलती की. नेहरू की बजाय सरदार पटेल को प्रथम प्रधानमंत्री बनाया जाता तो भारत का चित्र कुछ अलग रहता.  इसी तरह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष महामना मदनमोहन मालवीय से भी बीजेपी ने अपनत्व जताया. नेहरू पर तरह-तरह के मनगढ़ंत लांच्छन लगाने में भी कसर नहीं छोड़ी गई. नेहरू 17 वर्ष भारत के प्रधानमंत्री रहे और उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी कुल मिलाकर 15 वर्ष देश की पीएम रहीं. इंदिरा के बेटे राजीव भी पीएम बने. बीजेपी ने इसे इन नेताओं की लोकप्रियता नहीं, बल्कि परिवारवाद माना.

    गांधी के हत्यारे का महिमा मंडन

    साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर के अलावा साक्षी महाराज, कालीचरण, यति नृसिंहानंद आदि ने बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा मंडन किया. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने कभी ऐसे लोगों को रोकना-टोकना जरूरी नहीं समझा. संघ के लोगों ने गांधी हत्या को हमेशा गांधी-वध कहा जबकि वध शब्द का इस्तेमाल सिर्फ रावण, कंस, महिषासुर जैसे राक्षसों के वध के संदर्भ में होता आया है. इससे पता चलता है कि बापू के प्रति यह लोग कितनी नफरत रखते हैं. बहुत ही सुनियोजित तरीके से महात्मा गांधी की छवि धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है. केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी बड़ी सफाई से इस काम में लगी है.

    बीटिंग रिट्रीट से हटाई बापू की पसंदीदा धुन

    1950 से लगातार गणतंत्र दिवस के उपरांत बीटिंग रिट्रीट समारोह के आखिर में ईश्वर के प्रति विश्वास जताने वाली महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन ‘अबाइड विद मी’ बजाई जाती रही लेकिन 2020 में इसे पहली बार समारोह से हटा दिया गया. इस पर विवाद होने पर 2021 को इसे फिर से समारोह में शामिल किया गया. इस बार बीटिंग रिट्रीट के लिए 26 धुनों की जो सूची बनाई गई है उसमें ‘अबाइड विद मी’ का समावेश नहीं है. भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया था. जो गांधी को प्रिय था, वह बीजेपी को अप्रिय है. जिस तरीके से गांधी विरोध का सिलसिला चलाया जा रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि आगे चलकर कहीं माहौल ऐसा न बन जाए कि जिस तरह लेनिन के पुतले गिराए गए वैसा ही गांधी प्रतिमाओं के साथ होने लगे. नफरत की कभी कोई सीमा नहीं होती.