महाराष्ट्र में ज्यादा विकल्प नहीं, मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रपति शासन

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    बीजेपी सधी हुई चालते हुए महाविकास आघाड़ी सरकार की नींव खिसकाती रही लेकिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे गफलत में रहे. शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के समय तो छगन भुजबल, नारायण राणे और उसके बाद गणेश नाईक भी बगावत को आसानी से संभाल लिया गया था लेकिन अब चुनौती कहीं अधिक विकट है. इस बार एकनाथ शिंदे की बगावत सरकार के पैरों तले से जमीन खिसकाने वाली है. 

    इसे उद्धव ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा चैलेंज माना जा रहा है. केंद्र की बीजेपी सरकार के निशाने पर महाराष्ट्र हमेशा से रहा है. मुंबई जैसी देश की आर्थिक राजधानी वाले इस प्रदेश से सत्ता खो देने का मलाल बीजेपी को रहा. पूर्व सीएम व नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस बार-बार ‘मी पुन्हा येईन’ कहकर अपने पुनरागमन का दावा करते रहे. अंदर ही अंदर सारा खेला होता रहा. 

    इस बारे में शरद पवार ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चेताया था लेकिन समय रहते ही अपनी पार्टी की किलेबंदी को मजबूत नहीं कर पाए. शिवसेना के सभी बागियों के गुजरात में होने से स्पष्ट है कि बीजेपी पूरा अभियान चला रही है. बीजेपी के 2 नेता व पार्टी की पूरी गुजरात इकाई इसमें जुटी हुई है. यदि किसी भी तरीके से डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाया और आघाड़ी सरकार अल्पमत में नजर आई तो राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लागू होने और उसके बाद मध्यावधि चुनाव की संभावना बलवती होती दिखाई देती है.

    इस बार चुनौती गंभीर

    जब 2005 में नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी भी तो अपने साथ 10 विधायक ले गए थे. इसके पूर्व 1991 में छगन भुजबल ने 8 विधायकों को साथ लेकर पार्टी छोड़ी थी. बाल ठाकरे इन्हें नाराजी से ‘नारदा’ और ‘लावोवा’ कहा करते थे. राज ठाकरे यद्यपि किसी विधायक को साथ नहीं ले जा सके थे लेकिन उन्होंने बड़े पैमाने पर शिवसेना का कैडर तोड़ा था. 

    इस समय चुनौती इसलिए बेहद गंभीर है क्योंकि एकनाथ शिंदे को लगभग 25 विधायकों का समर्थन हासिल है. शिंदे की शर्त है कि कांग्रेस और एनसीपी से नाता तोड़कर शिवसेना बीजेपी के साथ आए तभी वह पार्टी में वापस आएंगे. उनका दावा है कि वे शिवसेना के भविष्य की खातिर यह सवाल उठा रहे हैं और सीएम बनने की उनकी मंशा नहीं है. उधर दिल्ली में बीजेपी हाईकमांड की ओर से देवेंद्र फडणवीस को आपरेशन लोटस के लिए हरी झंडी मिल चुकी है और वह एक्शन के लिए तैयार हैं.

    राऊत और आदित्य से नाराजगी तो एक बहाना है

    शिवसेना सांसद संजय राऊत और पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे से एकनाथ शिंदे की नाराजगी महज एक बहाना है, असली मकसद आघाड़ी सरकार को गिराना है. यदि शिंदे गुट के पास 39 विधायक हों तो उसे मुख्य शिवसेना के रूप में मान्यता मिल सकती है. यदि एकनाथ शिंदे ने बीजेपी को समर्थन दिया तो बीजेपी का संख्याबल 150 तक पहुंच जाएगा. 

    ठाकरे सरकार के विहिप जारी करने के बाद भी यदि शिंदे गुट ने विरोध से मतदान दिया तो सरकार की संभावना है. यदि शिंदे ने 37 विधायक अपने पक्ष में बताए तो उन्हें अस्वस्थ घोषित नहीं किया जा सकता. यह सभी विधायक यदि इस्तीफा दे देते हैं तो आघाडी का संख्या बल कम हो जाएगा. सरकार के बहुमत है या नहीं, इसका फैसला सिर्फ विधानसभा में हो सकता है. राज्यपाल सरकार को विश्वासमत लेने के लिए कह सकते हैं.