पार्टियों की आय, बंधी मुट्ठी करोड़ों की

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न जाने क्यों लोगों को दूसरों के बारे में जानने की इतनी उत्कंठा या व्यग्रता रहती है? ताकझांक की ऐसी ही प्रवृत्ति के तहत लोग जानना चाहते हैं कि पार्टियों के पास फंड की मोटी रकम कहां से आती है? उन्हें कौतुहल होता है कि ऐसे कौन से भामाशाह हैं जो दरियादिल से राजनीतिक दलों के लिए अपना खजाना खोल देते हैं? इसे जानने के लिए वे याचिका दायर करते हैं.

वे यह नहीं सोचते कि देनेवाला देता है और लेनेवाला लेता है. इसमें किस तीसरे का क्या काम? राजनीति हो या बिजनेस, उसमें ‘गिव एंड टेक’ का दस्तूर है. जो पार्टी को मोटी रकम देगा, पार्टी आगे चलकर उसका भी ध्यान रखेगी. उसके डोनेशन रूपी दानपुण्य का फल प्रदान करेगी.

अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि नागरिक चाहे तो उम्मीदवार की क्रिमिनल हिस्ट्री जान सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है उन्हें पार्टियों की इनकम और पैसों के सोर्स जानने का अधिकार है. नागरिक सिर्फ मतदान करें. पार्टी के फंड के पीछे जो फंडा रहता है, उसे जानने की कोशिश न करें. इलेक्ट्रोरल बान्ड का रहस्य जानने की बजाय जेम्स बॉन्ड की फिल्म देखें.

वे पार्टी की प्राइवेसी समझें. जहां तक व्यवसाय घरानों से होनेवाली उसकी आय का सवाल है यही कहा जा सकता है- परदे में रहने दो, परदा न हटाओ, परदा जो हट गया तो भेद खुल जाएगा!