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शायद ही कोई महीना ऐसा जाता है जिसमें ट्रेन हादसा नहीं हुआ. ट्रेनों के सुरक्षित चलने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन यथार्थ इसके विपरीत है. अब आंध्रप्रदेश में 2 ट्रेनें टकरा गईं. 5 बोगियां पटरी से हट जाने से 10 यात्रियों की मौत हुई और 40 घायल हो गए. विशखा से पलासा जा रही विशेष यात्री ट्रेन सिग्नल न मिलने से पटरी पर रूक गई तभी उसके पीछे आ  रही विशाखापतनम-रायगडा ट्रेन आकर उससे टकरा गई. अन्य ट्रेन दुर्घटनाओं की तरह यहां भी राहत और बचाव कार्य के अलावा मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा कर दी गई. आर्थिक सहायता देना अपनी जगह है लेकिन उसे किसी की जिंदगी की कीमत नहीं कहा जा सकता.

मानव प्राण अमूल्य होते हैं. यात्री ट्रेन में सवार होकर सकुशल अपने गंतव्य जाना चाहते हैं, कोई परलोक जाना नहीं चाहता. इसके बावजूद ट्रेन दुर्घटनाएं होती रहती है और यात्रीमौत के मुंह में जाते हैं. क्या अधिकतम सुरक्षा उपायों का अवलंबन करते हुए यह खौफनाक सिलसिला नहीं रोका जा सकता? बार-बार घोषणा के बावजूद रेलवे जीरों टालरेंस के लक्ष्य को क्यों हासिल नहीं कर पाती? गत 2 जून को ओडिशा के  बालासोर में 3 ट्रेनों की टक्कर हुई थी जिनमें 292 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी.

2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष भर में 48 ट्रेन हादसे हुए. इनमें आग लगने से हुई दुर्घटनाएं 4 बताई गईं. 2 माह पूर्व अगस्त महीने में उदयपुर – खजुराहो द्रोरगिरी ट्रेन में आग लगी थी. 26 अगस्त को मदुरै रेलवे स्टेशन के पास यार्ड में खड़ी पुनालू-मदुरै एक्सप्रेस के एक प्राइवेट कोच में सिलेंडर विस्फोट से आग लगी जिसमें 10 यात्रियों की जलकर मौत हो गई.

लखनऊ से तीर्थ यात्रियों से भरा यह कोच गौरव एक्सप्रेस में लगकर दक्षिण भारत के तीर्थस्थलों के लिए रवुाना हुआ था. किसी यात्री द्वारा कॉफी बनाते समय सिलेंडर फट गया. रेल सुरक्षा नियमों के मुताबिक गैस सिलंडर या ज्वलनशील वस्तु लेकर यात्रा करना अपराध है फिर यह गैरकानूनी का्म कैसे हुआ. यात्री साथ में सिलेंडर लेकर चल रहे थे और उसका इस्तेमाल कर रहे थे.

उनका निगरानी रखने का जिम्मा आखिर किसका था? इसके पहले 17 जुलाई को भोपाल से निजामुद्दीन जा रही वंदे भारत एक्सप्रेस में बीना रेलवे स्टेशन के निकट आग लग गई थी. इंदौर-रतलाम डेमू.. पैसेंजर के 2 हिस्सों में भी आग लगी. जिस स्टाफ पर ट्रेनों के रखरखाव की जिम्मेदारी होती है, उनके ध्यान नहीं देने से हादसे होते हैं. ट्रेन के अपने मूल स्टेशन से रवाना होने के पहले उसका पूरी तरह चेकअप होता है. फिटनेस इंचार्ज का सर्टिफिकेट मिलने पर ही ट्रेन रवाना होती है. इसके बाद मेंटनेंस स्टाफ को ईमानदारी से ट्रेन का ध्यान रखना चाहिए. लोको पायलट और गार्ड को भी सतर्क रहना चाहिए.

एंटी कोलीजन डिवाइस का इस्तेमाल करें

रेलवे डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गनाइजेशन (आरडीएचओ) ने एंटी कोलीजन डिवाइस का विकल्प किया है जिसमें ट्रेनों की टक्कर रोकी जा सकती है. यह प्रणाली जीपीएस और रेडियो कम्युनिकेशन के अलावा सेंसर पर आधारित है. यह प्रणाली 400 मीटर की दूरी के भीतर उसी ट्रैक पर दूसरी ट्रेन का पता लगा लेती है. इसके बाद ट्रेन में आटोमेटिक ब्रेक लग जाते हैं. इस प्रणाली का इस्तेमाल कर ट्रेनों की टक्कर रोकी जा सकती है.

रेलवे विभागीय स्तर पर अपनी रिपोर्ट में लीपापोती कर मामला निपटादेता है. जवाबदेही ठीक से तय नहीं होती. कुछ कर्मचारियों को दोषी बताकर मामला रफादफा कर दिया जाता है. रेलवे की सुरक्षा प्रणाली सवालों के घेरे में बनी रहती है. पटरियों व पुलों की मजबूती और ट्रेन का उचित रखरखाव तथा ट्रेन संचालन में सावधानी से दुर्घटनाएं टाली जा सकती हैं.