India's moral strength rang in the world of diplomacy

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अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि भारत के पास जबरदस्त नैतिक स्पष्टता के साथ बोलने की क्षमता है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि ‘भारत को रूस ने जो दर्जा दिया है, वो किसी भी अन्य देश को नहीं दिया गया है.’ ये दो वक्तव्य इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि भारत मौजूदा समय में भले किसी तरह की महाशक्ति का औपचारिक तमगा न रखता हो, लेकिन वैश्विक कूटनीति की दुनिया में आज भारत का रुतबा अमेरिका और रूस से कम नहीं है. इस मामले में भारत, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतों पर बहुत भारी है. यह महज संयोग नहीं है कि पिछले करीब एक साल से दुनिया कभी इशारे से, कभी खुलकर कहती रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने में भारत को अपनी बड़ी भूमिका निभानी चाहिए.

जिस तरह दिल्ली में जी-20 समूह के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री से लेकर वहां के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता तक बार-बार भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध में निर्णायक मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए आग्रह करते रहे, वह साधारण बात नहीं है. अमेरिका ने बहुत ईमानदारी से माना कि भारत के पास जबरदस्त नैतिक बल और स्पष्ट ईमानदारी है. आजतक के अपने कूटनीतिक इतिहास में अमेरिका ने अधिकृत रूप से दुनिया के किसी भी देश को भारत जैसा नैतिक बल वाला देश नहीं माना. अमेरिका ने भारत को यह विशेष दर्जा दिया है. 

जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा है, तब से रूस ने भारत को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश को इतनी  स्पष्टता के साथ यह हक नहीं दिया कि वह आगे बढ़कर इस झगड़े को खत्म करवाने में भूमिका निभाए. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दिल्ली में न सिर्फ दुनिया की शीर्ष ताकतों के बीच भारत की जमकर तारीफ की है बल्कि औपचारिक रूप से यह भी कहा कि भारत को रूस ने जो दर्जा दिया है, वह दर्जा उसने दुनिया के किसी भी दूसरे देश को नहीं दिया. भारत और रूस के संबंध न केवल ऐतिहासिक रूप से मजबूत हैं बल्कि दस्तावेजी हैं. मतलब यह है कि भारत और रूस के बीच के रिश्तों की मजबूती व्यक्तियों पर आधारित नहीं है, इस बात को अमेरिका ने भी पहली बार बहुत स्पष्ट और वजनदार तरीके से स्वीकारा है.

अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने सिर्फ भारत से रूस-यक्रेन युद्ध को खत्म कराने की गुजारिश भर नहीं की बल्कि यह भी बताया है कि भारत ही ऐसा क्यों कर सकता है. अमेरिका भी इस बात को मानता है कि रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते हैं. साथ ही अमेरिका यह भी स्वीकारता है कि भारत और रूस के जैसे रिश्ते हैं, अमेरिका और रूस के वैसे रिश्ते कभी नहीं रहे. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी इस बात को माना है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को भारत खत्म करवा सकता है, क्योंकि रूस और भारत के बीच मजबूत ऐतिहासिक रिश्ते हैं.

दो महीने पहले ही रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संघ ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय संगठनों में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है. रूसी विदेश मंत्री का यह भी कहना था कि भारत एक ऐसा देश है जो महज मल्टीपोलर दुनिया बनाने की चाहत ही नहीं रखता बल्कि वह इसका एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर भी उभरा है.

हर तरफ से भारत को लेकर की जा रही इन उम्मीदों से स्पष्ट है कि अब दुनिया चाहती है कि हम अपनी बड़ी भूमिका निभाएं और यह प्रधानमंत्री मोदी की जो वैश्विक छवि है, उसके लिए बहुत मुश्किल भी नहीं है. हमें निश्चित रूप से आगे बढ़ना चाहिए और वैश्विक परिस्थितियों ने हमारे लिए महान भूमिका निभाने का जो अवसर प्रदान किया है, हमें उस अवसर को किसी भी कीमत पर नहीं गंवाना चाहिए.

हमारे लिए इस भूमिका में सफल होना महज वाहवाही पाने तक सीमित नहीं होगा. अगर हमने प्रभावशाली ढंग से रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करा दिया तो हिंदुस्तान को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने से दुनिया का कोई भी देश नहीं रोक सकता. क्योंकि दुनिया का हर देश चीन को छोड़कर आज न सिर्फ भारत की तारीफ कर रहा है बल्कि इस बात को स्वीकार करता है कि वर्तमान में दुनिया के मसलों को हल करने में भारत की अहम भूमिका है. इसलिए उसके बिना सुरक्षा परिषद का कोई मतलब नहीं है. सिर्फ चीन अपने वीटो पावर की बदौलत हमें लगातार सुरक्षा परिषद से दूर किये हुए हैं, लेकिन अगर हम साहस करके इस जिम्मेदारी को स्वीकारते हैं तो चीन की इतनी न तो नैतिक, न ही राजनैतिक और न ही कूटनीतिक ताकत बचेगी कि वह सुरक्षा परिषद की हमारी स्थायी दावेदारी का विरोध कर सके. मोदी भी इस बात को समझ रहे हैं और उनके हावभाव इस बात की गवाही दे रहे हैं.

– वीना गौतम