नाना पटोले की PM पर टिप्पणी, ऐसा मर्यादाहीन आचरण क्यों

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    कितने ही राजनेता अपनी नेतागिरी चमकाने या खबरों में बने रहने के लिए कोई तीखी, चुभने वाली शरारतपूर्ण बात कहने का मौका नहीं छोड़ते. वे ऐसा अवसर ढूंढते ही रहते हैं कि कुछ बेढब बयानबाजी करें और बाद में बवाल मचने पर लीपापोती करें. निश्चित रूप से वे यह काम पूरे होशोहवास में करते हैं और जानते हैं कि कैरमबोर्ड के रिबाउंड के समान उनका बयान कैसा असर पैदा करेगा.

    वे किसी उत्तेजना में नहीं, बल्कि पूरी प्लानिंग के साथ आक्रामक किस्म का बयान दे जाते हैं लेकिन साथ ही किसी चतुर वकील की भांति अपने बचाव की पूरी गुंजाइश भी रखते हैं. उन्हें शांत तालाब में पत्थर फेंक कर लहर पैदा करने में एक अलग ही आनंद आता है. किसी की भावना आहत हो या दिल दुखे, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता.

    यह कांग्रेस की संस्कृति नहीं

    कांग्रेस महात्मा गांधी के अहिंसक विचारों की विरासत लेकर चलती है. उसमें मरने-मारने वाली हिंसक भाषा की कोई गुंजाइश नहीं है. स्वयं गांधी ने स्वाधीनता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के हिंसक मार्ग से असहमति जताई थी. कांग्रेस और शिवसेना की भाषा में काफी फर्क है. नाना पटोले महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं जो अत्यंत जिम्मेदारीपूर्ण पद है. इसके पूर्व वे विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं. 

    तब उनका दायित्व उत्तेजित सदस्यों को शांत कराना और सदन में संयम व गरिमा बनाए रखना था. इसलिए जनता सहज ही उनसे उम्मीद करती है कि वे नाप-तौल कर बोलेंगे और अपने कथन से उत्पन्न होने वाले परिणामों को देखते हुए एहतियात बरतेंगे. कमान से तीर छोड़ देने के बाद किसी वकील की तरह सफाई देना बेमतलब है. लोग तो इरादा देखते हैं कि किस मानसिकता से बयानबाजी की गई है.

    मोदी से पुरानी नाराजगी थी

    जब नाना पटोले 2017 में बीजेपी सांसद चुने गए थे तो उन्होंने पार्टी सांसदों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भंडारा जिले के किसानों की समस्या और व्यथा के बारे में बताने की कोशिश की थी. तब उन्हें तुरंत चुप करा दिया गया था. वैसे भी मोदी जब बैठक लेते हैं तो खुद ही बोलते हैं, उसमें किसी को बोलने की इजाजत नहीं रहती. यह अपेक्षा रहती है कि सभी खामोश रहकर शांतिपूर्वक मोदी की बात सुनेंगे. 

    वहां कोई बहस, विवाद, शिकायत या सुझाव की गुंजाइश नहीं रहती. पटोले को अखर गया कि जनप्रतिनिधि के रूप में उन्हें बोलने से रोक दिया गया था. इसकी खुन्नस उनके मन में फांस की तरह चुभ रही होगी. यह बात अलग है कि उस बात को वर्षों बीत गए. इसके बाद पटोले कांग्रेस में शामिल हो गए और विधायक चुने गए. उनके आक्रामक तेवर होने की वजह से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

    व्यर्थ का बड़बोलापन

    यूं तो ललित मोदी, नीरव मोदी और सुशीलकुमार मोदी जैसे कई मोदी हैं लेकिन जब राजनीति की बात चलती है तो ‘मोदी’ कहते ही पीएम की छवि हर किसी के दिमाग में उभरती है. नाना पटोले का वीडियो तेजी से वायरल हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि वे पिछले 30 वर्षों से राजनीति में हैं. इस दौरान उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है, इसलिए वे मोदी को मार सकते हैं क्योंकि वह लोगों को बांटते हैं. इस बयान पर बीजेपी नेताओं ने जब कड़ी आपत्ति जताई तो पटोले ने सफाई दी कि उनके इलाके में मोदी नाम का एक गुंडा गांव के लोगों को तंग कर रहा है. 

    इसकी शिकायत ग्रामीण कर रहे थे. मैं उनसे कह रहा था कि डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूं. यह प्रधानमंत्री के बारे में वाक्य नहीं है. इस वीडियो में प्रधानमंत्री या नरेंद्र का जिक्र नहीं किया है. नाना पटोले कोई पंचायत या नगरपालिका सदस्य नहीं हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्हें मर्यादाहीन आचरण नहीं करना चाहिए. जिम्मेदार पद पर रहकर कोई चुहलबाजी या सस्ती बयानबाजी करना कदापि उचित नहीं है. व्यर्थ का बड़बोलापन टालना ही श्रेयस्कर है.