NDA vs Opposition, who has how much power

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अप्रैल 2024 में संभावित लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और विपक्ष दोनों ही अपनी मोर्चेबंदी में तत्पर हो उठे हैं. बीजेपी के नेतृत्ववाले एनडीए तथा विपक्षी गठबंधन की बैठकें इस बेचैनी को दर्शाती हैं कि अपनी स्पष्ट जीत के प्रति कोई भी बड़ी पार्टी आश्वस्त नहीं है इसलिए गठजोड बनाना अपरिहार्य हो गया है. विपक्ष का एकमात्र उद्देश्य है कि मोदी और बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटाया जाए. पटना के बाद बेंगलुरु में हुई विपक्षी पार्टियों की बैठक के सामने एक विचारणीय मुद्दा यह भी रहा कि गठबंधन को पहले की तरह यूपीए नाम दिया जाए या कोई अन्य नाम सोचा जाए. समान न्यूनतम कार्यक्रम भी चर्चा का विषय रहा. आगे भी विरोधी दलों की बैठकें होंगी. माना जा रहा है कि यदि बीजेपी या एनडीए के एक प्रत्याशी के खिलाफ विपक्ष का एक सर्वमान्य प्रत्याशी खड़ा किया जाए तो विपक्ष के वोट नहीं बटेंगे और सीधी टक्कर दी जा सकेगी. पिछले 9 वर्षों से केंद्र की सत्ता से दूर रहनेवाली पार्टियां छटपटा रही हैं कि ‘मोदी मैजिक’ कैसे खत्म किया जाए. मोदी के मुकाबले विपक्ष का कोई सर्वमान्य नेता अभी तक सामने नहीं आया है वैसे विरोधी दलों में पीएम पद की आकांक्षा रखने वालों की कमी नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी पीएम पद की दावेदार नहीं है.

क्या है बीजेपी का गणित

यद्यपि बीजेपी ने 2019 के चुनाव में 300 का आंकड़ा पार कर लिया था लेकिन अब आशंका है कि अपने दम पर पार्टी 250 सीटें भी हासिल कर पाएगी या नहीं? यही वजह है कि अकेले दम पर विपक्ष को हराने का दावा करनेवाली बीजेपी को अब एनडीए गठबंधन की याद आई है. एनडीए के तहत 38 सहयोगी दल एक प्लेटफार्म पर आ रहे हैं. इनमें से कितनी ही छोटी क्षेत्रीय पार्टियां हैं. यदि बीजेपी को चुनाव में कम सीटें मिली तो 272 का आंकड़ा जुटाने के लिए उसे एनडीए के सहयोगी दलों की मदद जरूरी हो जाएगी. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदी प्रदेशों की कुल 218 में से 196 सीटें जीती थीं यूपी में उसका वर्चस्व रहा जबकि बिहार मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में उसका आधार खिसका था. बीजेपी ने महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा व पंजाब जैसे गैरहिंदी राज्यों से 80 सीटें जीती थी. दक्षिण भारत में बीजेपी का सीमित प्रभाव हैं. वहां 2019 में बीजेपी ने 130 में से सिर्फ 31 सीटें जीती थीं. बीजेपी ने तब दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर तथा अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में 29 सीटें हासिल की थी. वह छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का सहयोग इसलिए पसंद करती है क्योंकि उन्हें संभालना आसान है. वैसे जरूरत पड़ने पर बीजेपी को बीजद और वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है.

सीटों का लेनदेन भी संभव

कुछ क्षेत्रीय पार्टियां विधानसभा में खुद की मजबूती चाहते हुए बीजेपी को बदले में लोकसभा सीटें दे सकती हैं. टीडीपी, एआईएडीएमके या अजीत पवार का एनसीपी गुट ऐसी डील कर सकता है. ये पार्टियां राज्य की सत्ता में दिलचस्पी रखती हैं. महाराष्ट्र में बड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को सीएम तथा एनसीपी के अजीत पवार को डिप्टी सीएम बनाया तो उद्देश्य यही है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए ज्यादा लोकसभा सीटें छोड़ी जाएं.

विपक्ष का अगुआ कौन

क्या क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस का वर्चस्व खुले मन से स्वीकारेंगी? केजरीवाल की महत्वाकांक्षा और ममता बनर्जी के अहं का क्या होगा? क्या कुशल रणनीतिकार शरद पवार को चुनाव संयोजक बनाया जाएगा? नीतीशकुमार की क्या भूमिका होगी जो कि राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते हैं. कांग्रेस ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 44 और 2019 के चुनाव 52 सीटें जीती थी यदि अब वह 100 सीटें भी जीत ले तो भी बहुमत जुटाना आसान नहीं होगा.