उपचुनाव के नतीजों से घबराई सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम घटाए

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    कोई भी समझ सकता है कि प्रतिदिन पेट्रोल-डीजल के दाम धड़ल्ले से बढ़ रही केंद्र सरकार अचानक कैसे इतनी दरीया दिल या उदार हो गई कि उसने गुरुवार को देश भर में पेट्रोल कीमतों में 5.7 रुपए से 6.35 रुपए तक और डीजल की कीमतों में 11.16 रुपए से लेकर 12.88 रुपए तक कटौती की. 30 विधानसभा सीटों और 3 लोकसभा सीटों के उपचुनाव का नतीजा देखते हुए सरकार की समझ में आ गया कि पेट्रोल-डीजल की लगातार मूल्यवृद्धि और बेतहाशा बढ़ती महंगाई से देश की जनता बेहद नाराज है. 

    इसलिए  उसने पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क या एक्साइज ड्यूटी में कटौती की है. राज्य स्थानीय बिक्री कर या वैट (मूल्यवर्धित कर) सिर्फ बेसिक प्राइज या आधार मूल्य पर नहीं लगाते बल्कि केंद्र द्वारा लगाए गए उत्पाद शुल्क पर भी लगाते हैं. इसलिए ईंधन की कीमतों में वास्तविक से अधिक कटौती हुई है. सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा जारी मूल्य् अधिसूचना के मुताबिक दिल्ली में पेट्रोल कीमत में 6.07 रुपए प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 11.75 रुपए प्रति लीटर की कटौती हुई. 

    पेट्रोल की कीमतों में सबसे कम कटौती दादरा-नगहवेली में हुई जहां दाम 5.7 रुपए घटे. राजस्थान में सबसे अधिक 6.35 रुपए प्रति लीटर की कटौती हुई. डीजल के लिहाज से चेन्नई में सबसे कम 11.16 रुपए प्रति लीटर और ओडिशा में12.88 रुपए प्रति लीटर की कटौती हुई. वैट की दरें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होती है जिससे ईंधन की दरों में अंतर होता है.

    क्यों की जा रही अनदेखी

    केंद्र और राज्य सरकारों के बीजेपी और एनडीएके नेताओं की नजर में महंगाई कोई मुद्दा ही नहीं है. वे इस संबंध में बात ही नहीं करना चाहते. विगत 2-3 वर्षों में जिस तेजी से महंगाई बढ़ी है उसने सामान्य आदमी का जीना दूभर कर दिया है. जनता हैरान है कि 2013 में महंगाई एक बड़ा मुद्दा थी जिसे लेकर बीजेपी तत्कालीन मनमोहन सरकार पर आक्रामक थी. आज यह इतना गौण विषय बनकर कैसे रह गई. 

    सत्ताधारी दल के लोग ही नहीं, विपक्ष भी महंगाई को पहले जैसा मुद्दा नहीं बना पा रहे हैं. वे इसे जीएसटी के दायरे में लाना भी नहीं चाहते. इसकी बड़ी वजह यह है कि कोरोना संकट से आई मंदी के बाद पेट्रोल और डीजल सभी सरकारों की कमाई का सबसे बड़ा प्रमुख और आसान साधन बन गया है.

    अन्य देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा टैक्स

    भारत आज पेट्रोल और डीजल पर लगभग 260 फीसदी टैक्स वसूल कर  रहा है. यह टैक्स जर्मनी में 62 प्रतिशत, अमेरिका में30 प्रतिशत और जापान में 45 प्रतिशत है. राजनीतिक पार्टियों की नफे-नुकसान की राजनीति में आम जनता पिसती चली जा रही है. उपचुनावों के नतीजे ने सरकार को सतर्क कर दिया है कि जनता बढ़ती महंगाई से बेहद खफा है. अब उम्मीद करनी होगी कि सरकार अपनी तिजोरी भरने की बजाय महंगाई से राहत दिलाने की भी चिंता करेगी. 

    बीजेपी को कुछ माह बाद 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की चुनौती से जूझना है जिसमें यूपी का चुनाव विशेष महत्व रखता है. जनता का रवैया देखते हुए लगता है कि जो काम विपक्ष नहीं कर पाता, शायद वह काम चुनाव के नतीजे कर दिखाते हैं. जनता जब बर्दाश्त नहीं कर पाती तो नाराजगी और असहमति का वोट देती है.