Tata Group

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    5 वर्षों से जारी अनिश्चितता की स्थिति खत्म हुई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने टाटा-मिस्त्री केस में टाटा संस के पक्ष में फैसला सुनाते हुए नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) (National Company Law Appellate Tribunal) (NCLAT) decisionके सायरस मिस्त्री को दोबारा चेयरमैन नियुक्त करने के निर्णय को पलट दिया. इसके साथ ही हाल के इतिहास के एक अशोभनीय बोर्डरूम विवाद का पटाक्षेप हो गया. रतन टाटा (Ratan Tata)ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि वे न्यायालय के आभारी हैं और यह निर्णय टाटा समूह की अखंडता और नैतिकता पर मुहर है.

    लंबे समय से चल रहा था मामला

    24 अक्टूबर 2016 को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से सायरस मिस्त्री को यह कहकर हटा दिया गया था कि उनकी कार्यशैली टाटा ग्रुप की आदर्श परंपराओं के अनुरूप नहीं है. मिस्त्री को हटाने का फैसला बोर्ड डायरेक्टरों के बहुमत से लिया गया था. मिस्त्री ने अपने निष्कासन को नेशनल लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की मुंबई बेंच में चुनौती दी थी. उन्होंने छोटे अंशधारकों को सताए जाने की भी शिकायत की थी. एनसीएलटी ने 2018 में मिस्त्री की याचिका ठुकरा दी और टाटा सन्स के फैसले को सही बताया. इसके खिलाफ मिस्त्री ने एनसीएलएटी (नेशनल कंपनी ला अपीलेट ट्रिब्यूनल) में गए जिसने 17 दिसंबर 2019 को दिए फैसले में मिस्त्री को हटाए जाने को अवैध करार देते हुए उन्हें दोबारा चेयरमैन बनाने का आदेश दिया.

    टाटा सुप्रीम कोर्ट में गए

    टाटा सन्स ने एनसीएलएटी के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ए. एस. बोबडे की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय पीठ ने 2019 का एनसीएलएटी का ऑर्डर रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छोटे शेयर होल्डरों का कोई उत्पीड़न नहीं हुआ. ऐसे ही टाटा एंड संस ने कोई कुप्रबंधन नहीं किया.

    मिस्त्री परिवार के शेयरों के मूल्यांकन का मामला नहीं सुलझा

    टाटा सन्स में मिस्त्री परिवार (शापुरजी पालोनजी ग्रुप) के 18.4 प्रतिशत शेयर्स के मूल्य का मामला नहीं सुलझा. मिस्त्री परिवार ने पिछली बार अपने इन शेयर्स का मूल्य 1.75 लाख करोड़ बताया था जबकि टाटा ग्रुप ने इन शेयर्स की वैल्यू 70000 से 80000 करोड़ रुपए के बीच आंकी थी. यह मुद्दा अभी विवाद का विषय बना रहेगा. यह अलग कानूनी मसला है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई विचार व्यक्त नहीं किया.

    अब तरक्की संभव

    कानूनी तौर पर व्यापक रूप से मामला निपट जाने के बाद अब टाटा ग्रुप अपने चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन द्वारा तय की गई रणनीति के आधार पर आगे बढ़ सकेगा. अब अनेक मुख्य प्रोजेक्टस् को स्वीकृति मिलने की उम्मीद है. टाटा संस और टाटा ट्रस्ट दोनों अपने अपने बोर्ड में नए सदस्यों को मनोनीत कर सकेंगे. अब शापुरजी पालोनजी ग्रुप को तय करना है कि वह टाटा में अपना निवेश जारी रखे या आपसी सहमति की शर्तों के आधार पर उससे बाहर निकल आए. सुप्रीम कोर्ट में जीत के बाद टाटा ग्रुप की कंपनियों के शेयर में 1 से 5 प्रतिशत तक उछाल आ गया. इस मामले से कुछ बातें उभर कर सामने आई हैं जैसे कि कारपोरेट में निर्णयों को लेकर अधिक पारदर्शिता और आपसी विश्वास की आवश्यकता है. स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों की भूमिका को मजबूत कर उन्हें अधिक उत्तरदायी बनाना होगा. ऐसे ही छोटे निवेशकों व शेयर होल्डर्स के अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए. यह सारे पहलू ईज आफ डूइंग बिजनेस (व्यवसाय करने की सुगमता) का अंग होने चाहिए. कारपोरेट हाउसेस के संचालन ढांचे में इन खामियों को दुरुस्त करना होगा.