तमिलनाडु में CM-राज्यपाल टकराव चरम पर

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देश के विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों (Governors) और वहां की निर्वाचित सरकार के बीच ठनी हुई है जिससे अवांछित रूप से संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न हो रहा है. यह लोकतंत्र की भावना के लिए बेहद नुकसानदेह है. राज्यपालों के असहयोगी और नकारात्मक रवैये से यही लगता है कि क्या वे केंद्र सरकार (Central Government) के इशारे पर ऐसी टेढ़ी चाल चल रहे हैं और जानबूझकर राज्य सरकार के काम में अड़ंगा डाल रहे हैं? तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (M. K. Stalin) और राज्यपाल आरएन रवि (R. N. Ravi) के बीच तू डाल-डाल मैं पात-पात जैसा खेल चल रहा है. 

तमिलनाडु विधानसभा ने हाल ही में राज्यपाल द्वारा लौटाए गए सभी 10 विधेयक फिर से पारित कर दिए. अब संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक राज्यपाल को विधेयकों को मंजूरी देनी ही होगी. इसके बावजूद यदि अब भी राज्यपाल बिलों पर हस्ताक्षर नहीं करते तो बड़ा संवैधानिक गतिरोध पैदा हो जाएगा. कानून, कृषि, उच्च शिक्षा से संबंधित इन विधेयकों को राज्यपाल ने गत 13 नवंबर को लौटा दिया था. इस पर विधानसभा की विशेष बैठक बुलाकर यह विधेयक पुन: पारित किए गए. मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक और बीजेपी ने सदन से बायकाट किया था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोक रखने पर चिंता जताई थी.

स्टालिन का आरोप

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि राज्यपाल ने बहुत लंबे समय तक अपने पास रोक रखने के बाद बिना कोई कारण बताए मनमर्जी से विधेयक लौटा दिए. उन्हें मंजूरी न देना अलोकतांत्रिक व जनविरोधी है. केंद्र सरकार राज्यपालों के माध्यम से गैरभाजपा शासित सरकारों को निशाना बना रही है. विधानसभा ने 2020 और 2023 में 2-2 विधेयकों को मंजूरी दी थी जबकि अन्य विधेयक पिछले वर्ष पारित किए गए थे.

राष्ट्रपति को पत्र लिखा

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर राज्यपाल को उपयुक्त निर्देश देने को कहा है. तमिलनाडु के सांसदों ने भी यह मामला राष्ट्रपति के सामने उठाया है और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. स्टालिन ने कहा कि यदि इन प्रयासों से बात नहीं बनी तो हम सुप्रीम कोर्ट में दस्तक देंगे. हमने हमेशा कानून का पालन किया है. इसलिए संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुरूप सदन ने उन सभी विधेयकों को पुन: पारित किया जिन्हें राज्यपाल ने अकारण लौटा दिया था. राज्यपाल इसी ताक में रहते हैं कि राज्य सरकार की योजनाएं कैसे रोकी जाएं. वे जिस पद पर आसीन हैं वहां से सरकार की नीतियों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करना अशोभनीय है.

तमिल संस्कृति के खिलाफ

स्टालिन ने कहा कि राज्यपाल सार्वजनिक मंचों पर तमिल संस्कृति, साहित्य व सामाजिक प्रणाली के खिलाफ टिप्पणी करते रहते हैं. उन्हें समानता, सामाजिक न्याय तथा तमिलनाडु का आत्मगौरव स्वीकार नहीं है. राज्यपाल अपनी व्यक्तिगत नापसंदगी के कारण विधेयकों को लौटाकर तमिलनाडु की जनता और विधानसभा का अपमान कर रहे हैं. 12 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को मिलने से संबंधित बिल भी राज्यपाल ने वापस भेज दिया. यह विधान मंडल की संप्रभुता के खिलाफ है.