जज की पात्रता देखें या राजनीतिक बैकग्राउंड

    Loading

    सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट लक्षम्मा चंद्र विक्टोरिया गौरी की मद्रास हाईकोर्ट में एडीशनल जज के रूप में नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका ठुकराते हुए कहा कि हम कॉलेजियम को यह आदेश नहीं दे सकते कि वह विक्टोरिया गौरी को लेकर अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे. गौरी ने शीर्ष अदालत में अपनी नियुक्ति को राजनीतिक बैकग्राउंड के आधार पर चुनौती देनेवाली याचिका की सुनवाई के बीच शपथ ली. मद्रास हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी.

    राजा ने राष्ट्रपति द्वारा जारी नियुक्ति आदेश पढ़ने के बाद गौरी को अतिरिक्त न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई. मुद्दा यह है कि हाईकोर्ट जज पद पर नियुक्ति के लिए किसी अधिवक्ता का न्यायिक बैकग्राउंड देखा जाए या उनका राजनीतिक भूतकाल देखते हुए निर्णय लिया जाए? कुछ विघ्नसंतोषी लोग राजनीतिक भूतकाल को मुद्दा बनाने में रुचि लेते हैं. कॉलेजियम ने गौरी की नियुक्ति की सिफारिश केंद्र सरकार को 17 जनवरी को की थी. 6 फरवरी को 3 याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि गौरी ने अल्पसंख्यकों का तिरस्कार करनेवाले भाषण दिए थे. गौरी के ये वक्तव्य 2012, 2013 व 2018 के थे जब वह बीजेपी की सक्रिय कार्यकर्ता और महिला मोर्चा की स्थानीय पदाधिकारी थीं उस समय वह वकील थीं.

    वकीलों के राजनीति में भाग लेने की परंपरा महात्मा गांधी के समय से चली आ रही है. कितने ही वकील और बैरिस्टर राजनीति में सक्रिय थे. केंद्र सरकार ने 13 जजों के नाम राजपत्र में जारी किए. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि गौरी पदग्रहण कर सकती हैं, इसलिए सुनवाई तत्काल की जाए. इसलिए न्यायमूर्ति संजीव खन्ना व न्या.

    भूषण गवई की पीठ ने 7 फरवरी को सुबह सुनवाई की. उधर गौरी ने एडीशनल जज की शपथ ले ली. वकील और जज में यह फर्क है कि वकील एक का पक्ष लेता है लेकिन जज को दोनों पक्ष देखने पड़ते हैं. गौरी की सिफारिश करने से 11 महीने पूर्व अर्थात 16 फरवरी 2022 को कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट के जज पद के लिए एडवोकेट आर जान सत्यम के नाम की सिफारिश की थी. सरकार ने आईबी की रिपोर्ट का हवाला देकर यह सिफारिश ठुकरा दी थी.

    आईबी रिपोर्ट में सत्यम के भूतकाल पर उंगली उठाई गई थी. उसमें कहा गया था कि सत्यम ने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करनेवाले एक लेख को सोशल मीडिया पर शेयर किया था. क्या किसी लेख को शेयर करने से उस व्यक्ति की राजनीतिक बैकग्राउंड तय किया जा सकता है? आईबी की रिपोर्ट देखने के बाद भी कॉलेजियम ने पात्रता, चरित्र और प्रामाणिकता जैसे 3 गुणों के आधार पर सत्यम के नाम की पुन: सिफारिश 17 जनवरी को की थी. पुन: सिफारिश के बाद सत्यम का नाम लिस्ट में कायम है लेकिन सरकार ने उनकी नियुक्ति का आदेश जारी नहीं किया है. इससे प्रश्न उठता है कि क्या सरकार भी जज की राजनीतिक भूमिका देखने लगी है? गौरी का बीजेपी समर्थक राजनीतिक बैकग्राउंड स्वीकार्य है जबकि सत्यम को ऐसी रियायत नहीं दी गई.