कोहली के मन में क्या है? वनडे की कप्तानी छिनने की टीस

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    विराट कोहली की जगह रोहित शर्मा को वनडे टीम का कप्तान बनाने के बीसीसीआई के फैसले के बाद दोनों खिलाड़ियों के बीच अहं का टकराव या ईगो प्रॉब्लम बढ़ गया है. कोहली ने टी-20 वर्ल्ड कप में भारत की विफलता के बाद टी-20 टीम की कप्तानी छोड़ दी थी. बोर्ड ने उनकी वनडे टीम वाली कप्तानी भी छीन ली क्योंकि वह नहीं चाहता था कि व्हाइट बॉल गेम में 2 अलग-अलग कप्तान रहें. 

    बोर्ड ने वनडे की कप्तानी रोहित को सौंप दी. वास्तव में विराट कोहली अभी वनडे टीम की कप्तानी छोड़ने के मूड में नहीं थे. अब वे सिर्फ टेस्ट टीम के मुखिया होकर रह गए हैं. कहा जा रहा है कि विराट और रोहित एक दूसरे की कप्तानी में खेलना नहीं चाहते. इस तरह द.अफ्रीका दौरे से पहले टीम इंडिया में फूट पड़ गई है. 

    कोहली के टी-20 की कप्तानी छोड़ने के लगभग 3 महीने बाद बीसीसीआई ने रोहित को वनडे टीम का भी कप्तान बना दिया. इसके अगले ही दिन बोर्ड के अध्यक्ष सौरव गांगुली का बयान आया कि उन्होंने कोहली को टी-20 कप्तानी छोड़ने के लिए मना किया था. इस पर कोहली की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

    बहाना या हकीकत

    भारत को द. अफ्रीका दौरे में पहले 3 टेस्ट मैच और फिर 3 वनडे मैच की सीरीज खेलनी है. कहा जा रहा है कि हैमस्ट्रिंग इंजरी (घुटने के पीछे की नस खिंच जाना) की वजह से रोहित शर्मा टेस्ट सीरीज नहीं खेल पाएंगे लेकिन वनडे सीरीज तक फिट हो जाएंगे. इस तरह से उनका कोहली की कप्तानी में खेलना टल जाएगा. 

    दूसरी ओर कोहली ने अपनी बेटी वामिका के बर्थडे के बावजूद तीसरे और अंतिम टेस्ट में खेलना तय किया है परंतु उन्होंने अपनी पारिवारिक मजबूरियों के चलते वनडे सीरीज में शामिल होने में असमर्थता जताई है. इसका अर्थ है कि वे रोहित शर्मा की कप्तानी में वनडे मैचों में नहीं खेलेंगे.

    टकराव बहुत पुराना है

    भारतीय क्रिकेट टीम में पहले भी सुनील गावस्कर और कपिलदेव के बीच टकराव था. सुनील बहुत अच्छे टेस्ट ओपनर थे और अपनी बल्लेबाजी में वेस्टइंडीज के नामी फास्ट बोलर्स के छक्के छुड़ा दिए थे, जबकि कपिल न केवल जबरदस्त फास्ट बोलर थे, बल्कि आलराउंडर भी थे. जिम्बाब्वे टेस्ट में जब आधी टीम बेहद कम स्कोर पर आउट हो गई थी तब छठे स्थान पर आए कपिल देव ने 175 नॉट आउट रहकर टीम की इज्जत बचाई थी. 

    उनका सर्वाधिक टेस्ट विकेट का रिकार्ड बाद में अनिल कुंबले ने तोड़ा. सुनील गावस्कर कपिल को जूनियर मानते थे. कपिल आक्रामक तेवर वाले कप्तान साबित हुए. इसी तरह मोहम्मद अजहरुद्दीन और सचिन तेंदुलकर के बीच भी तनातनी थी. अजहर पर फिक्सिंग के आरोप में बैन लग गया जबकि सचिन शतकों का महाशतक बनाने वाले खिलाड़ी रहे, जिनकी तुलना आस्ट्रेलिया के डॉन ब्रैडमैन से की जाती थी. सौरव गांगुली (जो कि अब बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं) की ‘द वॉल’ कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ से नहीं पटी. महेंद्रसिंह धोनी का ट्रिपल सेंचुरी मारनेवाले वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर जैसे बड़े खिलाड़ियों से मनमुटाव जगजाहिर था.

    जब देश के लिए खेलना है तो मनमुटाव कैसा

    खिलाड़ियों को खेल भावना या स्पोर्ट्समैन स्पिरिट रखनी चाहिए. सीनियर-जूनियर के मुद्दे को भी तूल नहीं देना चाहिए. आखिर वरिष्ठ खिलाड़ी होने पर भी सचिन तेंदुलकर ने धोनी की कप्तानी में खेलना स्वीकार किया था. कोहली भी सोचकर देखें कि पिछले कुछ वर्षों में उनका रन औसत घट गया है. वे सेंचुरी भी नहीं बना पा रहे हैं. 

    कप्तानी का बोझ हट जाने से वे अपनी बल्लेबाजी पर एकाग्रतापूर्ण ध्यान दे सकेंगे. वनडे मैचों में दर्शक उन्हें पहले के समान विस्फोटक बल्लेबाजी करते देखना चाहते हैं. रोहित ने भी तो प्रशंसा करते हुए कहा कि वे विराट कोहली की कप्तानी में 5 वर्षों तक खेले और हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाया. हम लोग जीतने के इरादे से उतरते थे.