क्या राष्ट्रपति शासन लागू होगा? बंगाल में हिंसा व अराजकता

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    बंगाल में स्थितियां काबू से बाहर होती जा रही हैं. हिंसा और अराजकता का बोलबाला है. ऐसे हालात वामपंथियों के 3 दशक के शासन के समय थे और आज भी हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसी ढर्रे को चलने दिया. पहले लेफ्ट के लोग हिंसा व आतंक फैलाते थे, आज वही काम टीएमसी के नेता कार्यकर्ता कर रहे हैं. बंगाल विधानसभा में बीजेपी और टीएमसी विधायकों की मारपीट लोकतंत्र के लिए कलंक है. 

    बीजेपी विधायक रामपुरहाट की हिंसा और 8 लोगों को जिंदा जलाए जाने की घटना पर चर्चा की मांग कर रहे थे लेकिन सरकार इस भयानक कांड को रफादफा करना चाहती है. सदन में हुई हाथापाई में बीजेपी विधायक असित मजूमदार घायल हो गए जबकि मनोज तिगरा के कपड़े फाड़कर उन्हें पीटा गया. विधानसभा स्पीकर ने बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी सहित 5 विधायकों को निलंबित कर दिया. विपक्ष के नेता को बोलने से रोकने के लिए टीएमसी विधायकों ने जमकर हंगामा किया.

    बंगाल में राजनीतिक हत्याएं होना नई बात नहीं है. वहां भ्रष्टाचार, सिंडीकेट राज, कटमनी (तोलाबाजी) व्याप्त है. वहां व्यवसाय चलाना हो, बिल्डर का कराया ठेकेदारी करनी हो अथवा छोटा-मोटा धंधा करना हो तो भी पार्टी के स्थानीय लोग पैसा वसूल करते हैं. परिवहन से लेकर सड़क किनारे के विक्रेताओं को भी पैसा देना पड़ता है. 

    टीएमसी के लोग अवैध रेस खनन करवाते हैं और मोटी रकम वसूल करते हैं. बीरभूम जिले की मयूराक्षी, ब्राम्हनी नदियों के घाट पर लगभग 80 रेती खदान अवैध रूप से चला रही है्. सरकार इन तथ्यों से इनकार करती है. पार्टी के नेता-कार्यकर्ता इसी तरह अवैध कमाई कर रहे हैं. माफिया की वजह से व्यापार करना मुश्किल हो गया है. बेरोजगार युवाओं को हिंसा फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. वे गंदी  राजनीति के मोहरे बन जाते हैं.

    सीबीआई जांच जरूरी

    बीरभूम हिंसा में मारे गए लोगों व हत्यारों दोनों ही पक्षों का संबंध टीएमसी से है. इस प्रकरण में टीएमसी ब्लॉक यूनिट अध्यक्ष अनारुल हसन को मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया गया. पुरानी हत्या का बदला लेने के लिए पहले लोगों की बुरी तरह पिटाई कर हाथ पैर की हड्डियां लोड दी गईं और फिर घरों में बंद कर आग लगाकर जीते-जी जला दिया गया. इस अमानुसिक घटना की जांच करने के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई को जिम्मेदारी सौंपी है.

    अपराधियों से मिलीभगत

    बंगाल में अपराधी गिरोहों और राजनीतिक दलों की मिलीभगत का जो सिलसिला सीपीएम सरकार के दौरान था, वही टीएमसी सरकार के समय भी चला आ रहा है. हर तरफ आतंक से वसूला गया पैसा नीचे से ऊपर तक जाता है. पुलिस भी मजबूर है क्योंकि गुंडो की पार्टी का वरदहस्त मिला हुआ है. जबरन वसूली के चलते कोई नया उद्योग लगाने की हिम्मत नहीं करता. विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री ने ममता के शासन में चल रही बोलाबाजी (अवैध वसूली) का जिक्र किया था. जब सत्ताधारी ही लूट को बढ़ावा देंगे तो यह अराजकता कैसे रुकेगी.

    राष्ट्रपति शासन की मांग

    बंगाल में बीजेपी ही नहीं कांग्रेस ने भी ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है. प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने कानून-व्यवस्था की लगातार खराब हो रही स्थिति का हवाला देते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. कांग्रेस नेतृत्व को समझ में आ गया कि उसके और टीएमसी के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता. ऐसे में अपना अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस भी कोलकाता की सड़कों पर उतर पड़ी है. बंगाल के राज्यपाल के पास टीएमसी सरकार की धांधली, गुंडागर्दी का काफी कच्चा-चीट्ठा है. यदि केंद्र का संकेत मिले तो वे राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं.