हरियाणा में 315 रु. छत्तीसगढ़ में 190 रु. मनरेगा में समान मजदूरी मिले

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    समान काम के लिए समान मजदूरी का भुगतान होना चाहिए लेकिन मनरेगा जैसी राष्ट्रीय योजना में बड़ा विरोधाभास है कि  भिन्न राज्यों में लोगों को अलग-अलग मजदूरी दी जाती है जो कि अन्यायपूर्ण है. हरियाणा में मनरेगा की मजदूरी दर 315 रुपए रोज है तो छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में यह दर सिर्फ 190 रुपए है.

    ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने इस बात पर ध्यान देते हुए अपनी रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की है कि मनरेगा के तहत मिलनेवाली मजदूरी दर पूरे देश में एक समान कर दी जाए. रिपोर्ट ने अलग-अलग राज्यों में मनरेगा मजदूरी दर अलग-अलग होने को समझ से परे बताया है. इसके साथ ही सरकार से सिफारिश की है कि मनरेगा में काम के दिनों को वर्तमान 100 दिनों से बढ़ाकर 150 दिन किया जाए.

    यह सिफारिशें काफी महत्वपूर्ण हैं. समिति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि बजट में मनरेगा के लिए जो धन आवंटित होता है वह पिछले 4-5 वित्तीय वर्षों से बेहद कम होता जा रहा है. शुरु में कम रकम दी जाती है और बाद में जरूरत पड़ने पर और पैसा आवंटित किया जाता है. समिति ने कहा कि बजट का आवंटन व्यावहारिक होना चाहिए ताकि वर्ष के बीच में पैसों की कमी न पड़े.

    मनरेगा को सोशल आडिट, समय पर मजदूरी भुगतान और केंद्र व राज्यों के बीच बेहतर समन्वय पर भी रिपोर्ट में जोर दिया गया. मनरेगा में जल संरक्षण, हरियाली बढ़ाने और वनीकरण जैसे कार्य भी जोड़े जा सकते हैं जो पर्यावरण रक्षा के लिहाज से उपयोगी हैं यदि मनरेगा ठीक से चले तो गांव की भलाई के कार्यों में रोजगार और मजदूरी घर के साथ ही बिल उपलब्ध हो सकते हैं.

    मनरेगा में सामान्यत: कानूनी प्रावधान यह है कि मजदूरी की ओर से कार्य की मांग आने पर ही कार्य आयोजित करने की प्रक्रिया आरंभ होती है. इसमें कुछ समय लगता है. सामान्य वक्त के लिए तो यह व्यवस्था ठीक है. पर जब लोगों की आर्थिक स्थिति अधिक कमजोर है, तो प्रशासन को अपनी ओर से भी, पंचायतों के सहयोग से इस प्रक्रिया कोआरंभ करने की छूट होनी चाहिए, ताकि कम समय में अधिक कार्य आरंभ किए जाएं.

    केंद्र सरकार की बड़ी जिम्मेदारी शीघ्रता से पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने की है. समय पर मजदूरों की मजदूरी का भुगतान भी नही हुआ, तब तो मूल प्रयोजन पूरा ही नहीं होता है और कई बार यही स्थिति देखी गई है. गारंटी शब्द का अभिप्राय ही यह है कि यदि विधिसम्मत ढंग से रोजगार नही मिला, तो इसके बदले में क्षतिपूर्ति या मुआवजे की राशि दी जाएगी. कानून में इसका प्रावधान भी है पर 95 प्रतिशत से अधिक मामलों में यह राशि नहीं दी जाती.