Agreement with UAE, how effective is the effort to increase trade in rupees

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भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने आपसी व्यापार को मजबूत बनाने के उद्देश्य से स्थानीय मुद्रा के इस्तेमाल को लेकर आशयपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. यह समझौता प्रधानमंत्री मोदी की हाल की यात्रा के दौरान हुआ. रुपए और दिरहम जैसी मुद्राओं में व्यापार होने से दोनों देशों की वित्तीय संस्थाओं को लाभ होगा. दोनों देशों के कानुन के अनुरूप मुद्राप्रबंधन भी संभव होगा. अभी दोनों देशों को व्यापार के लिए डॉलर में मुद्रा विनिमय करना पड़ता था. नई व्यवस्था से विनिमय लागत बचेगी. दोनों देश के बीच 2022-23 में 85 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. भारत विश्व का तीसरा बड़ा तेल आयातकर्ता है जो यूएई को डॉलर में भुगतान करता है. भारत चाहता है कि उसका यथासंभव विदेशी व्यापार रुपए में हो. गत वर्ष रिजर्व बैंक के देश के 12 से ज्यादा बैंकों को 18 विभिन्न देशों के साथ रुपए में व्यापारिक सौदे निपटाने की अनुमति दे दी थी लेकिन तब से श्रीलंका और बांग्लादेश छोड़कर कोई सामने नहीं आया. यहां तक कि भारत का पुराना मित्र रूस भी अब तेल का भुगतान रुपए की बजाय चीनी मुद्रा युआन या अरब करेंसी दिरहम में चाहता है. रूस के पास काफी रुपए जमा हो गए हैं जिसके इस्तेमाल का उसके पास रास्ता नहीं है. गत सप्ताह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और तंजानिया के बीच उनकी स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को लेकर उम्मीद जताई. भारत की कोशिश रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की है. विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते उसका ऐसा सोचना भी सही है. यदि रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण होता है तो इससे व्यवसाय लागत घटेगी. भारत की डॉलर पर निर्भरता कम होगी तथा विदेशी मुद्रा कोष में बड़ी तादाद में डॉलर रखना जरूरी नहीं रह जाएगा. एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने पीएल-480 के तहत भारत को गेहूं की सप्लाई की थी और भारत ने उसका भुगतान रुपए में किया था. तब लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे. उस वक्त रुपया मजबूत था और 4.50 रुपए प्रति डॉलर की एक्सचेंज रेट था. आज 82 रुपया बराबर 1 डॉलर है. यदि एशियाई, अफ्रीकी और अरब देशों से रुपए में व्यापार समझौता हो जाता है तो भी वह लाभप्रद रहेगा. डॉलर में होनेवाले व्यापार को रुपए में बदलने के लिए काफी ढांचागत सुधार करने होंगे तथा अन्य देशों को इसके लिए राजी करना होगा. रुपए को अतिरिक्त सेटलमेंट करेंसी बनाने के लिए आईएमएफ से बात करनी होगी क्योंकि अभी दुनिया में डालर का ही वर्चस्व बना हुआ हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपए की साख बढ़ने के प्रयास करने होंगे. भारतीय रिजर्व बैंक की अंतर्विभागीय रिपोर्ट ने इसके बारे में सुझाव दिए हैं.