NMC का बड़ा निर्णय, अब सस्ती होगी डॉक्टरी की पढ़ाई

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    आबादी के लिहाज से देश में डाक्टरों की भारी कमी है. खास तौर पर ग्रामीण व दूर-दराज के क्षेत्रों में डाक्टरों का अभाव रहने से वहां नीम-हकीमों या झोला छाप डाक्टरों की बन आई है. आदिवासी व पिछड़े इलाकों में झाड़-फूंक करने वाले या उल्टी-सीधी दवाइयां देने वाले मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हैं. डाक्टरों की तादाद तभी बढ़ सकती है जब मेडिकल शिक्षा किफायती हो. इसके लिए सरकारी मेडिकल कालेजों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है. 

    यह भी महसूस किया जा रहा है कि स्पेशलाइजेशन के बढ़ने से स्पेशलिस्ट डाक्टर व बड़े अस्पताल तैयार हो रहे हैं लेकिन  बुनियादी स्तर पर फैमिली डाक्टर का अभाव देखा जा रहा है जो परिवार के छोटे से बड़े सदस्य का इलाज करते थे. पढ़ाई में भारी भरकम खर्चा लगने से डाक्टरों की फीस भी काफी महंगी हो गई थी. 

    निजी अस्पतालों का बिल मरीज के परिवार पर भारी बोझ साबित होता है. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने एक अहम फैसला लेते हुए तय किया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड मेडिकल विश्वविद्यालयों में आधी (50 प्रतिशत) सीटों की फीस संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होगी. 

    इस फीस में छूट का लाभ पहले उन उम्मीदवारों को मिलेगा जिन्होंने सरकारी कोटे की सीटों का लाभ उठाया है लेकिन संबंधित संस्थान की कुल क्षमता के 50 फीसदी सीटों तक ही सीमित हैं. अगर संबंधित संस्थान में सरकारी कोटे की सीट कुल सीटों के 50 प्रतिशत से कम है तो ऐसी स्थिति में शेष उम्मीदवारों को भी सरकारी मेडिकल कालेज के बराबर ही शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा. 

    छात्रों को यह लाभ मेरिट के आधार पर दिया जाएगा. इस निर्णय से लाभ यह होगा कि निजी मेडिकल कालेजों में भी 50 प्रतिशत छात्र सरकारी कालेजों जितना कम शुल्क देकर डाक्टरी की पढ़ाई कर सकेंगे. इस तरह उन होनहार छात्रों को इसका फायदा मिलेगा जो सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश से वंचित रह गए थे और निजी कालेजों की अधिक फीस देने की आर्थिक क्षमता नहीं रखते.