BJP के अलग-अलग पैमाने, केदार की विधायकी रद्द करने में जल्दबाजी क्यों

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देखा गया है कि कोई नेता कितना ही भ्रष्टाचार (Corruption) के आरोपों से घिरा हो, यदि वह बीजेपी (BJP) की शरण में आ जाता है तो उसके खिलाफ चल रहे सारे मामले ठंडे पड़ जाते हैं. इसी तरह बीजेपी अपने सांसदों और विधायकों के बारे में अलग पैमाना अपना कर उन्हें अभयदान देती है. कोई अपना नेता गुनाह करे तो उसकी अनदेखी की जाती है जबकि विपक्षी पार्टी के सांसद-विधायक के लिए बीजेपी सरकार बेहद सख्त रवैया अपनाती है और तड़का-फड़की में कार्रवाई करती है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री सुनील केदार (Sunil Kedar) को नागपुर जिला केंद्रीय सहकारिता बैंक में धन का दुरुपयोग मामले में दोषी करार दिए जाते ही तत्काल उनकी राज्य विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई. न जाने इतनी जल्दबाजी क्यों और किसलिए की गई? विशेष अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद इसे चुनौती देने और अपील दायर करने का अधिकार सुनील केदार के पास है. बीच में अवकाश आने से केदार ऐसा नहीं कर पाए और 2 दिन मामला टल गया. इसी दौरान राज्य की शिंदे-बीजेपी सरकार ने छुट्टी के बावजूद कानून का हवाला देकर केदार की सदस्यता रद्द करने का राजपत्र जारी कर दिया.

प्रश्न उठता है कि यदि कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी तो क्या इतनी ही तेजी से उनकी सदस्यता बहाल की जाएगी? जिस तत्परता से केदार की सदस्यता रद्द की गई उसमें लोगों को प्रतिशोध या मजा चखाने की भावना नजर आती है. महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंढे ने इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सुनील केदार की विधानसभा सदस्यता रद्द की गई लेकिन यह सवाल अवश्य उठेगा कि विपक्ष के नेताओं के लिए अलग न्याय और बीजेपी के नेताओं के लिए अलग न्याय? ऐसा क्यों? उन्होंने मिसाल देते हुए बताया कि मुजफ्फरनगर से बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को दोषी करार देकर सजा सुनाई गई लेकिन उन्हें अपील का मौका दिया गया.

गुजरात से सांसद नारनभाई कछाड़िया को 3 साल की सजा मिली थी. हाईकोर्ट में उनकी सजा रोकने की अपील ठुकरा दी गई फिर भी उनके खिलाफ बीजेपी ने कार्रवाई नहीं की. आखिर विपक्ष के मामले में अलग कानून क्यों है? इस तरह की तानाशाही लोकतंत्र को खत्म कर देगी. अतुल लोंढे की दलील में दम है. बीजेपी पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाकर अपनों को संरक्षण दे रही है जबकि विपक्षी सांसद-विधायक के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाती है. ऐसे अलग पैमाने क्यों होने चाहिए?