पद्मनाभ के समान जगन्नाथ, आखिर क्यों नहीं खुल रहे मंदिरों के खजाने

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    देश के प्रसिद्ध मंदिरों में भक्तों द्वारा अर्पित चढ़ावे के रूप में भारी खजाना जमा है. अवश्य ही मंदिर के विकास, उसकी देखरेख तथा पूजा अर्चना व उत्सवों के लिए धनराशि रहनी जरूरी है लेकिन जो अतिरिक्त धन है, उसका उपयोग जनकल्याण की योजनाओं के लिए किया जा सकता है. आखिर यह धन जनता का ही तो है. इस विचार के विपरीत कुछ मंदिरों का खजाना पूरी तरह गुप्त रखा जा रहा है. 

    केरल के पद्मनाभ मंदिर के समान ही पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अपार धनराशि है. पद्मनाभ मंदिर के खजाने को लेकर काफी चर्चा थी. अनहोनी की आशंका के चलते उसका एक कक्ष (चेंबर) अभी तक खोला नहीं गया है. राजा-महाराजाओं के समय मंदिरों में इसलिए भी खजाना रखा जाता था कि भगवान के भय से कोई उसे चुराएगा नहीं और अकाल या किसी प्राकृतिक आपदा के समय उसका जनकल्याण में इस्तेमाल किया जा सकेगा. 

    भगवान जगन्नाथ के ‘रत्न भंडार’ को लेकर ओडिशा सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि पुरी में 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर के खजाने के आंतरिक कक्ष को फिर से खोलने की कोई योजना नहीं है. सरकार ने मंदिर की संपत्ति के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी देने से भी इनकार किया.

    कानून विभाग के अंतर्गत जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने वोल्लंगीर के आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत पांडा के सवालों का जवाब नहीं दिया. राज्य सूचना आयोग ने इस बात पर एसजेटीए के अधिकारी पर जुर्माना लगाया जगन्नाथ मंदिर अधिनियम 1955 में हर 3 वर्ष में रत्न भंडार के निरीक्षण का प्रावधान होने के बावजूद यह 44 वर्ष तक बंद रहा.

    मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष पुरी के गणपति महाराजा ने मंदिर की संपत्ति पर भक्तों का संदेह दूर करने के लिए खजाना खोलने की मांग की है. मंदिर प्रशासन ने कहा कि इस मुद्दे को मंदिर प्रबंध समिति की अगली बैठक में रखा जाएगा. एसजेटीए सरकार को प्रबंध समिति के फैसले की जानकारी देगा और उसके बाद ही खजाना खोला जाएगा. मंदिर का रत्नभंडार इससे पहले 1803 और 1926 में खोला गया था.