शालीनता का तकाजा है कि वैवाहिक जीवन से जुड़ी बातें सार्वजनिक तौर पर खुलकर न की जाएं. फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जैसे जिम्मेदार, परिपक्व और उम्रदराज नेता ने सदन में यह ज्ञान कैसे बघार दिया कि पढ़ी-लिखी सुशिक्षित पत्नी इच्छा न होने पर पति को साफ मना करने का साहस रखती है. बढ़ती आबादी के मुद्दे पर नीतीश अपनी बात रख रहे थे. उन्होंने इसे प्रदेश में महिलाओं के अशिक्षित होने से जोड़ दिया. किसी से व्यक्तिगत बातचीत में नीतीशकुमार ने अपनी इस रिसर्च के बारे में बताया होता तो बात अलग थी.
विधानसभा में महिला सदस्यों की मौजूदगी में ऐसा कहते हुए उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ. मर्यादा का भान न रखते हुए उन्होंने जो बयान दिया, उस पर विवाद होना ही था. कमान से निकला तीर और जुबान से निकला शब्द वापस नहीं आता. मुख्यमंत्री नीतीश का बयान सुनकर राजद नेता राबड़ीदेवी लजाईं तो मुन्नीदेवी ने चेहरा छिपा लिया. बीजेपी की महिला एमएलसी रोती हुई बाहर निकल आई. नीतीशकुमार की विवादित टिप्पणी का बचाव करते हुए उपमुख्यमंत्री व आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश सेक्स एजुकेशन की बात कर रहे थे.
इसे लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने कहा कि नीतीश का बयान सी ग्रेड फिल्मों के डायलॉग की तरह था. इसे लेकर सोशल मीडिया पर महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति पालीवाल और राज्यसभा सांसद में नोकझोंक हो गई. बीजेपी को भी नीतीशकुमार की तीखी आलोचना के लिए मुद्दा मिल गया. उसने मांग की कि नीतीश राजनीति से अलग हो जाएं. मामले को तूल पकड़ता देखकर नीतीशकुमार ने अपने बयान पर खेद जताते हुए कहा कि मैं शर्म करता हूं और अपनी निंदा करता हूं.
अपनी गलती का अहसास नीतीश को बाद में हुआ. उन्हें पहले ही सोचना था कि वे अपने किसी मित्र या परिचित के साथ व्यक्तिगत तौर से गपशप नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें विधान मंडल में सीएम के रूप में जिम्मेदारी पूर्वक बयान देना है जो रिकार्ड पर जाता है. उनका आशय था कि महिलाओं की अशिक्षा और आत्मविश्वास की कमी होना नुकसानदेह है. इस पर विस्तार से समझाने के फेर में वे कुछ ज्यादा और अनर्गल ही बोल गए. उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में सतर्कता बरतेंगे अन्यथा बवाल मचते देर नहीं लगती.