बढ़ते प्रदूषण की समस्या, पटाखों के उपयोग व पराली जलाने पर रोक

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दिल्ली और मुंबई में वायु प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि सांस लेना दूभर हो गया है. इसके लिए इंसानी गतिविधियां काफी हद तक जिम्मेदार हैं. हालत इतनी गंभीर है कि न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और राजस्थान के मुख्य सचिवों व डीजीपी को सख्त निर्देश देते हुए कि फसल कटाई के बाद बचे अवशेष (पराली) जलाने पर तत्काल प्रतिबंध सुनिश्चित करने को कहा. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व न्या. सुधांशु धूलिया की पीठ ने दिल्ली सरकार को यह भी निर्देश दिया कि नगर निगम का ठोस कचरा खुले में न जलाया जाए. अदालत ने कहा कि पराली जलाना राजनीतिक मसला नहीं है.

इसे तुरंत रोकना होगा. हम दिल्ली और आसपास के शहरों को गैस चेंबर बनता नहीं देख सकते. पराली की समस्या से स्थायी समाधान पाने के लिए धान की खेती कम करने का सुझाव दिया. बेंच ने व्यवस्था दी कि पराली जलाने पर रोक की जिम्मेदारी एसएचओ की रहेगी. पूरे मामले की निगरानी स्वयं मुख्य सचिव करेंगे. प्रतिवर्ष ठंड के मौसम में पराली का धुआं लोगों का दम घोंटने लगता है. उत्तरी राज्यों में हवा ऊपर नहीं उठती जिससे अस्थमा व श्वास के मरीजों का जीना दूभर हो जाता है. लोगों के फेफड़े खराब होते हैं. दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया.

पार्टिकुलेट मैटर (सीएम) की मात्रा निर्धारित 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित लिमिट से 7 या 8 गुना अधिक है. कोहरा और धुआं मिलकर ‘स्मोग’ बना देते हैं जो श्वसन प्रणाली में गहराई तक प्रवेश कर व्यक्ति को बीमार करता है. पिछले वर्ष कहा गया था कि किसानों से पराली जलाने की बजाय उसकी खाद बनाने को कहा जाएगा और इसके लिए आर्थिक मदद दी जाएगी. पता नहीं उस योजना का क्या हुआ! मुंबई में अन्य वजहों के अलावा कंस्ट्रक्शन गतिविधियों से प्रदूषण बढ़ा हैं.

अब दीपावली का त्योहार सन्निकट है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को पटाखे फोड़ने को लेकर संवेदनशील होना चाहिए. 2018 में शीर्ष अदालत ने पटाखों की बिक्री व उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था जो अब भी जारी रहेगा और विधिवत लागू होगा. प्रतिबंध लगाने का यह निर्देश सिर्फ दिल्ली-एनसीआर के लिए नहीं बल्कि देश के सभी राज्यों के लिए है.

पटाखों में घातक रासायनिक तत्व होते हैं. उसका धुआं श्वसन तंत्र, आंखो और मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है. कितने ही लोगों को पटाखे से जल जाने पर अस्पताल जाना पड़ता है. पटाखों का शोर व धुआं मरीजों व बुजुर्गों की परेशानी बढ़ा देता है. निश्चित समय में पटाखे जलाने पर रोक लगाने से भी प्रदूषण कम नहीं होगा. दीपावली बगैर पटाखों के भी आनंदपूर्वक मनाई जा सकती है.