राष्ट्रपति का चित्र साफ, मुकाबला द्रौपदी और यशवंत में

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    बीजेपी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में चयन कर दर्शाया है कि वह महिला व आदिवासी वर्ग को पूरा-पूरा महत्व देती है. यदि द्रौपदी चुन ली जाती हैं तो प्रतिभा पाटिल के बाद देश की दूसरी महिला तथा प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति होंगी. बीजेपी एक पत्थर से कई शिकार करने में माहिर हैं. इससे गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटों को आकर्षित किया जा सकेगा. 

    पिछले विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ व झारखंड में आदिवासी समुदाय बीजेपी से दूर चला गया था जिसे पुन: करीब लाया जा सकता है. यद्यपि संसद और विधानसभाओं में आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में सीटें आरक्षित हैं लेकिन फिर भी उनकी सामाजिक और आर्थिक प्रगति कम हो पाई है. यदि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तो कितने ही आदिवासी बीजेपी की ओर अपना रुझान दिखा सकते हैं. चुनावों में महिलाओं की भूमिका अहम होती है. 

    बीजेपी ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं में महिलाओं का ध्यान रखा है. मंत्रिमंडलों में भी महिलाओं का समावेश किया है. राजनीति में महिला आरक्षण की बात बार-बार कही जाती है लेकिन कोई भी पार्टी चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई सीट नहीं देती. नतीजा यह है कि अभी भी संसद और विधानसभाओं में महिला सदस्यों की तादाद काफी कम है. द्रौपदी मुर्मू का नाम 2017 में भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चर्चा में था लेकिन तब बीजेपी ने रामनाथ कोविड का चयन किया था. 

    आदिवासी संभाल समुदाय की मुर्मू 2000 में बनी ओडिशा की बीजेपी-बीजद गठबंधन सरकार में मंत्री थीं. 2015 में वे झारखंड की राज्यपाल बनीं और 2021 तक इस पद पर रहीं. विपक्षी पार्टियों ने पूर्व वित्त एवं विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है. स्पष्ट है कि राष्ट्रपति पद का मुकाबला इन दोनों उम्मीदवारों के बीच ही होगा. एनडीए के पास लगभग 48 प्रतिशत वोट होने से उसका पलड़ा भारी है. ओडिशा मूल की द्रौपदी मुर्मू होने से बीजू  जनता दल उनके पक्ष में वोट दे सकता है.