जज ने की जमकर खिंचाई, अफसर को नालायक कह कोर्ट ने लताड़ा

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जब अक्षम, सुस्त और निकम्मे अफसरों को सही राह पर लाने में सरकार विफल हो जाती है तो न्यायपालिका ऐसे नौकरशाहों की जमकर खिंचाई करती है। अफसर सरकार को चकमा दे सकते हैं लेकिन अदालत की आंख में धूल नहीं झोंक सकते। ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी को पुनर्जीवित करने की मांग वाली याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में सुनवाई के दौरान नगरीय प्रशासन विभाग (भोपाल) के कार्यपालन यंत्री राकेश रावत अदालत के ज्यादातर सवालों का जवाब नहीं दे पाए।

इस पर जस्टिस रोहित आर्या ने तीखी टिप्पणी करते हुए अफसरों को नालायक-अनपढ़ और डफर कह दिया। उन्होंने कहा कि तुम इंजीनियर हो या अनपढ़ हो। तुम पुराने अफसर की तरह ही नालायक हो। यहां का टाइप किया हुआ एफिडेविट लिया और कोर्ट में पेश कर दिया। अंदर क्या लिखा है इसे पढ़ने की कोशिश नहीं की। हमारी आर्डरशीट वेस्ट पेपर नहीं है।

न्यायमूर्ति आर्या ने अतिरिक्त महाधिवक्ता से कहा कि हम जो लिखाते हैं, कुछ सोचकर लिखाते हैं। आप इन अफसरों के साथ घर पर बैठकर होमवर्क क्यों नहीं करते? इन अफसरों को समझाओ। एक एप है। अंग्रेजी समझ में नहीं आती तो उससे हिंदी अनुवाद करा लें। जज ने अफसरों को फटकारते हुए कहा कि किस बात की सरकार से तनख्वाह लेते हो? बाबूगीरी करने की या पोस्टमैन की? सच तो यह है कि तुम लोगों की काम करने की आदत ही बिगड़ गई है। सारा काम बाबूगीरी के आधार पर ही चलाते हो। फिर कोर्ट की डांट सुनते हो।

जज का आशय था कि अदालती प्रक्रिया को गंभीरता से लेना चाहिए। किसी प्रोजेक्ट पर ईमानदारी से काम करने की बजाय उसमें भ्रष्टाचार किया जाता है और काम के नाम पर लीपापोती की जाती है। स्वर्णरेखा नदी के पुनर्जीवन के मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि लाइन बिछाने के नाम पर 173 करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा हुआ है। किस वार्ड में कितना काम हुआ है इसकी विस्तृत रिपोर्ट दो तब अदालत विस्तार से आर्डर जारी करेगी। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्वर्णरेखा नदी मामले में आदेश दिया कि इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी नोडल अधिकारी 5 मार्च को होनेवाली अगली सुनवाई में अदालत में हाजिर रहें।