पेंशन कम (Nominal Pension) से कम इतनी होनी चाहिए कि व्यक्ति सम्मानजनक जीवन जी सके और किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत न आए। यह सचमुच शर्मनाक है कि जिला जजों को रिटायरमेंट (Retired District Judges) के बाद सिर्फ 19,000-20,000 रुपये से भी कम पेंशन मिल रही है। इतनी कम रकम में कोई कैसे गुजारा कर सकता है। डि्ट्रिरक्ट एंड सेशन जजों को अवकाश प्राप्ति के बाद ऐसी त्रासदी से गुजरना पड़ रहा है जो खेदजनक है। ऐसे में वे कैसे जीवनयापन करते होंगे। उनकी मान-मर्यादा की रक्षा के लिए भी इतनी कम पेंशन अपर्याप्त हैं।
अंतत: सुप्रीम कोर्ट की निगाह में यह बात आई। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सेवानिवृत्त जिला जजों को वर्षों की लंबी और समर्पित सेवा के बाद जब इतनी नाममात्र की पेंशन मिल रही है तो वे कैसे सर्वाइव करेंगे? रिटायर होने के बाद जिला जज अचानक प्रैक्टिस में नहीं उतर सकता और 61-62 वर्ष की आयु में हाईकोर्ट में वकालत शुरू नहीं कर सकते।
जिला जज रह चुके व्यक्ति के लिए ट्रायल कोर्ट या कनिष्ठ न्यायालय में वकालत करना उसकी गरिमा के अनुकूल नहीं है। सीजेआई ने रिटायर्ड जिला जजों को मिलनेवाली बेहद मामूली पेंशन राशि पर गंभीर चिंता जताई और केंद्र सरकार को प्रतिनिधित्व कर रहे अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से अनुरोध किया कि इस तरह की डिस प्रपोर्शनेट पेंशन (अनुपातहीन निवृत्ति वेतन) नीति पर सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों के लिए न्यायसंगत समाधान लाने में सहायता प्रदान करें। उन्होंने कहा कि हम इस समस्या का उचित हल चाहते हैं। क्योंकि जिला जज वास्तव में पीड़ित हैं। सरकार के क्लास-2 और क्लास-3 कर्मचारियों को भी इससे ज्यादा पेंशन मिलती है।
पुलिस कर्मी भी अधिक पेंशन के पात्र हैं फिर जिला जजों से ही ऐसा अन्याय क्यों होना चाहिए? यदि पेंशन संबंधी नीति में कोई दोष या विरोधाभास है तो इसे यथाशीघ्र दुरुस्त किया जाना चाहिए। कार्मिक और पेंशन मामलों के विभाग को यथाशीघ्र इस पर विचार करते हुए न्यायसंगत फैसला करना चाहिए। आज की भारी महंगाई में 19,000 रुपए की पेंशन ऊंट की डाढ़ में जीरे के समान है।
इतने कम निवृत्ति वेतन में जैसे-तैसे गुजारा करनेवाला रिटायर्ड जिला जज अपने घर आए मेहमान को चाय-नाश्ता भी नहीं करा सकता। इस ऊंचे पद पर रहने के बाद वह 61-62 वर्ष की उम्र में कहीं नौकरी भी नहीं कर सकता। अटार्नी जनरल ने सीजेआई को आश्वस्त किया कि वो निश्चित रूप से इस मुद्दे पर गौर करेंगे। सीजेआई ने यह भी बताया कि कुछ हाईकोर्ट जजों ने वेतन नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि जिला न्यायालय से उनके प्रमोशन के बाद उन्हें नए भविष्य निधि खाते आवंटित नहीं किए गए।