Who should be given priority, development at the cost of environment will be expensive

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केंद्र सरकार संसद के वर्तमान मानसून सत्र में वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक लाने जा रही है. इससे फिर यह प्रश्न चर्चा में आएगा कि क्या पर्यावरण की कीमत पर विकास को गति दी जानी चाहिए. इस विधेयक में वनों के वर्गीकरण को पुन: परिभाषित किया जाएगा तथा ऐसे वनों का जो रिकार्ड में नहीं हैं, विकास परियोजनाओं के लिए उपयोग का प्रावधान किया जा सकता है. लगभग 400 पर्यावरणविदों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कहा है कि यह विधेयक वर्तमान सत्र में प्रस्तुत न करते हुए इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा जाए जो इस विधेयक की खामियों पर गौर करे और उसमें सुधार के लिए अपने सुझाव दे. विपक्षी पार्टियों के संासदों, वनाधिकार विशेषज्ञों तथा अन्य ने आरोप लगाया है कि इस विधेयक में वनसंरक्षण अधिनियम 1980 के अनेक प्रावधानों को शिथिल किया गया है. उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि सरकार बड़े पैमाने पर विकास योजनाएं लागू करने की धुन में मूल वन कानून को ताक पर रखना चाहती है. वनों का संरक्षण और वनों का विस्तार करने की बजाय सड़कों व पुलों का निर्माण, पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कों का चौड़ाईकरण तथा नई बस्तियों के निर्माण, बिजलीघरों की क्षमता बढ़ाने पर सरकार का जोर है. उत्तराखंड में प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा चुकी है. 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद गत वर्ष जोशीमठ में भारी दरारे पड़ीं. ऐसे इलाकों में निर्माण कार्य जोखिम भरा है फिर भी होटलों, यात्री निवासों का निर्माण, बड़ी तादाद में वाहनों का आवागमन प्राकृतिक संतुलन को नष्ट कर रहा है. वहां के पहाड़ भुरभुरे है जहां से मिट्टी और चट्टाने गिरती रहती हैं भूस्खलन का खतरा लगातार बना रहता है लेकिन फिर बारहमासी सड़के बनाने और सुरंग खोदने के उपक्रम किए जाते हैं. टिहरी बांध के खिलाफ सुंदरलाल बहुगुणा ने अनशन किया था लेकिन फिर भी उसका निर्माण होकर रहा. जैव विविधता (बायोडाइवर्सिटी) की रक्षा के लिए वन संरक्षण आवश्यक है. वनवासियों के अधिकारों का भी सवाल है. वन ही कार्बन व प्रदूषण को सोखते हैं. देश में वनों की कटाई की वजह से तापमान वृद्धि हुई है तथा ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ का प्रकोप बढ़ा है. भूजल संरक्षण के लिए वनों का विशेष महत्व है. विशेषज्ञों के अनुसार भारत के प्राकृतिक वनों का सिर्फ 12.37 प्रतिशत हिस्सा शेष रह गया है. यद्यपि वन क्षेत्र बढ़ने के दावे किए जाते है लेकिन देश के कुछ भागों में की जा रही वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को छुपा दिया जाता है. विकास आवश्यक है लेकिन वनों की रक्षा भी उतनी ही जरूरी मानी जानी चाहिए.