संगीत का ऐसा हुआ असर गाय दूध देने लगी प्रचुर

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हाल ही में हमने खबर पढ़ी कि संगीत सुनाए जाने से गाय (Cow) अधिक दूध (Milk) देने लगीं. यह कैसा चमत्कार है? क्या मूक प्राणी भी संगीत के सुरों से प्रभावित होते हैं?’’

हमने कहा, ‘‘संगीत जड़-चेतन सभी पर असर करता है. शिव का डमरू, कृष्ण की बांसुरी, सरस्वती और नारद की वीणा हमें बताती है कि जहां ईश्वर है वहां संगीत है. कृष्ण जब बंसी बजाते थे तो गाय-बछडे दौड़े चले आते थे. संत कबीरदास ने तो अपने भीतर दिव्य अनहद नाद की खोज की थी. पता नहीं सरस्वती के सितार की कौन सी झंकार हृदयतंत्री को स्पंदित कर दे.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमने आपसे सवाल किया कि कैसे म्यूजिक सुनकर गाय का मनोरंजन हुआ और वह ज्यादा दूध देने लगी? क्या यह बात अन्य मवेशियों पर भी लागू होती है?’’

हमने कहा, ‘‘आप कोशिश करके देखिए. संवेदनशील गाय की बात अलग है लेकिन भैंस पर इसका असर होना मुश्किल है. कहावत है- भैस के आगे बीन बजाई, वह बैठी पगुराई.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, संगीत के 7 सुर हैं. सप्ताह में 7 दिन हैं. आकाश की उत्तर दिशा में तारों के रूप में सप्तर्षि दिखाई देते हैं. शहनाई की धुन और मंत्रोच्चार के बीच शादी में 7 फेरे लिए जाते हैं. सूरज के रथ में 7 घोड़े जुते रहने की कल्पना की गई है. हम सोचते हैं कि देसी गाय को शास्त्रीय संगीत और विदेशी ब्रीड की जर्सी गाय का पॉप म्यूजिक सुनाना चाहिए. आज की पीढ़ी को आधुनिक संगीत पसंद है. उसे पुराने मेंलोडी वाले गाने पसंद नहीं आते. वैसे आप चाहें तो ठंड के इस मौसम में तिल की गजक खाते हुए गुलाम अली, जगजीत सिंह या पंकज उधास की गजल सुनने का आनंद ले सकते हैं.’’

हमने कहा, ‘‘यह देखा गया है कि आम जनता मोर्चा ले जाकर अपनी मांगों और मजबूरियों का राग छेड़ती है लेकिन नेता उसकी अनसुनी कर देते हैं. उनके कान सिर्फ दलालों की आवाज सुन पाते हैं. संकेतों और इशारों में कितने ही सौदे तय हो जाते हैं. सत्तापक्ष को विपक्ष की आवाज कर्कश लगती है. काटमकाट की राजनीति में पक्ष और विपक्ष कभी भी एकसाथ नहीं गा सकते- मिले सुर मेरा तुम्हारा!’’