नेताओं की अलग-अलग तमन्ना, किसी को पसंद गन्ना तो किसी को जिन्ना

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, तुक से तुक मिलाने का काम या तो कवि करते हैं या फिर नेता! यूपी के एटा में बीजेपी अध्यक्ष नेपी नड्डा ने सपा पर फिकरा कसते हुए कहा कि हम गन्ना की बात करते हैं तो वे जिन्ना की! कोई परिवारवाद के नाम पर पार्टी खड़ी करता है लेकिन बीजेपी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास वाली पार्टी है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘तुक तो ममता बनर्जी भी जोड़ती रही हैं. बंगाल विधानसभा चुनाव के समय जब नड्डा प्रचार करने पहुंचे थे तो ममता ने उत्तेजित होकर कहा था कि ये बाहरी लोग नड्डा-पड्ढा यहां चले आते हैं. जहां तक गन्ना और जिन्ना का तुक जोड़ने की बात है, बीजेपी की तमन्ना यही है कि यूपी में फिर एक बार – योगी सरकार. गन्ना को लेकर कहावत है कि गन्ना मीठा है तो इसका मतलब यह नहीं कि जड़ से खा जाओ. अंग्रेजी में गन्ना शुगरकेन कहलाता है अर्थात शक्कर की छड़ी. पहले विद्या और छड़ी के बीच निकट का संबंध था. 

    तब कहा जाता था- छड़ी पड़े छमाछम, विद्या आए घमाघम. गन्ना या तो लाल होता है या पीला. कुछ लोग गुस्सा आने पर लाल-पीले हो जाते हैं. महाराष्ट्र की राजनीति की चाबी शुगर लॉबी के पास रहती आई है. शुगर बनाने के लिए गन्ना जरूरी है. इसी तरह पाकिस्तान बनाने के लिए जिन्ना जरूरी थे. जिन्ना की जिद पर भारत का बंटवारा हुआ था. उर्दू को पाकिस्तान की राजभाषा बनाने वाले जिन्ना को खुद उर्दू का एक लफ्ज बोलना नहीं आता था. वे या तो अपनी मातृभाषा कच्छी बोलते थे या अंग्रेजी. 

    जिन्ना पोर्क खाते थे जिसे इस्लाम में हराम माना जाता है. पाकिस्तान बनने के 6 महीने बाद जिन्ना टीबी से चल बसे. विभाजन के समय हुए दंगों में लाखों बेगुनाह मारे गए जिसके लिए जिन्ना जवाबदार थे. उपमहाद्वीप की राजनीति में जिन्ना बिटर टेस्ट या कड़वाहट छोड़ गए, लेकिन जहां तक गन्ना की बात है, वह यूपी का हो या महाराष्ट्र का, हमेशा स्वीट या मीठा ही होता है.’’