हर किसी के दिल में चाहत, कहीं न कहीं मिल जाए राहत

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज नेताओं के समान मौसम भी तेवर बदलने लगा है।  इधर गर्मी शुरु होने जा रही थी लेकिन मार्च के महीने में बेमौसम बारिश हो गई।  चुनाव के मौसम में भी नेताओं (Lok sabha elections 2024) को वोटों की बारिश का इंतजार रहेगा ताकि उनके कलेजे में ठंडक पड़े।  जिन इलाकों में जल संकट की स्थिति है, वहां लोग बारिश से राहत महसूस करेंगे। ’’ 

हमने कहा, ‘‘दूसरों को छोड़िए, अपनी कहिए।  यह बताइए कि आपको राहत मिली या नहीं? राहत से लोगों की चाहत पूरी होती है।  चुनाव निकट आते ही केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ गया।  आपको क्या मिला? आपको राज्य सरकार ने राहत दी या केंद्र सरकार ने? कहीं प्रधानमंत्री के विशेष राहत कोष से तो नहीं मिली? कितनी मिली? राहत पाने वालों की लिस्ट किसने तैयार की? कलेक्टर तक आपका नाम कैसे पहुंचा? जरूर आपने किसी नेता का सहयोग लिया होगा।  आजकल बिना वसीलेबाजी के काम नहीं बनता। ’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपसे दिल की बात कहना गुनाह हो गया।  हमने बड़ी सहजता से अपने विचार व्यक्त किए और आप हमेशा की तरह बात का बतंगड बनिा रहे है। ’’ 

हमने कहा, ‘‘तथ्यों की जांच इसी तरह की जाती है।  आपके दिल की बात होठों पर आ गई।  आपने खुद कबूल किया कि आपको राहत मिली है।  क्या आपको लगता है कि हम राहत का अर्थ नहीं जानते? राहत का मतलब होता है मुआवजा या सहायता राशि।  सरकार बाढ़, भूकंप, जमीन धंसने, रेल्वे दुर्घटना, बेमौसमी बारिश से फसलों की बरबादी जैसी बातों की रिपोर्ट मिलने पर राहत प्रदान कनरे का आदेश दे देती है।  गिने चुने लोगों को राहत मिलती है बाकी की रकम नेता और अधिकारी खा जाते हैं।  आप हमारे पड़ोसी हैं आपका फर्ज बनता था कि खुद राहत लेते और हमें भी दिलाते।  आपने खुदगर्जी दिखाई।  अकेले राहत ले ली और हमें भनक तक नहीं लगने दी। ’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज आप हमें इस तरह क्यों लपेट रहे हैं? हमें कोई राहत नहीं मिली।  वैसे भी आचार संहिता लागू होने से अभी सरकार किसी को कुछ दे नहीं सकती।  दरअसल गर्मी के मौसम में अचानक बारिश की फुहारें आने से हमें तसल्ली हुई।  संतोष और समाधान मिला।  दिल को सुकून पहुंचा। ’’ 

हमने कहा, ‘‘आइन्दा शब्दों का सोच-समझकर उपयोग किया कीजिए।  आपने हमसे कहा कि राहत मिली।  इस ‘राहत’ शब्द को लेकर बेकार ही इतनी देर तक हुज्जत होती रही। ’’