Lord Jagannath became ill, this is also a form of devotion

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, क्या संपूर्ण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ भी कभी बीमार पड़ सकते हैं? खबर है कि पुरी में भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के एकांतवास में चले गए. पूर्णिमा के देवस्नान में भक्तों द्वारा अत्यधिक जलाभिषेक की वजह से वे 15 दिन बीमार रहेंगे. इस दौरान उन्हें प्रतिदिन भोग पूजन में औषधि युक्त काढ़े का भोग लगाया जाएगा. इन 15 दिनों में वे भक्तों को दर्शन नहीं देंगे. पुरी में प्रति वर्ष ऐसा होता है.’’ हमने कहा, ‘‘भावनाप्रधान भक्त मानकर चलते हैं कि भगवान उनसे दूर या भिन्न नहीं हैं. वैष्णव भक्ति में भगवान से सानिध्य भाव रखा जाता है. यथा देहे तथा देवे का विचार रहता है. यदि भक्त बीमार हो सकता है तो क्या भगवान नहीं हो सकते!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘भगवान तो लोगों की पीड़ा हरते हैं, दुख निवारण करते हैं फिर वे कैसे बीमार पड़ेंगे’’ हमने कहा, ‘‘क्या डॉक्टर बीमार नहीं पड़ते? सगुण सरकार के रूप में अवतार लेकर भगवान राम और भगवान कृष्ण ने कितनी ही चुनौतियां और कष्ट झेले थे. इससे भक्तों को सीख मिलती है कि हिम्मत मत हारो. वैष्णव भक्ति शाखा में बाल रूप में भगवान को विधिवत पूजा जाता है. उन्हें उत्तम वस्त्र पहनाए जाते हैं और श्रृंगार किया जाता है. गर्मी में मलमल के और शीतकाल में उनी वस्त्र. उन्हें झूला झुलाया जाता है. छोटी सी नौका में बिठाकर नौका विहार या डोलयात्रा भी कराते हैं. भजन और आरती से उन्हें प्रसन्न किया जाता है. भगवान की वात्सल्य भाव, सखा भाव, स्वामी भाव से आराधना की जाती है. मीराबाई ने उन्हें प्रियतम के रूप में देखा था. मंदिरों में भगवान को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं. ऐसा सामीप्य भाव सिर्फ हिंदुओं में ही है. कहते हैं वल्लभाचार्यजी के पुत्र गोसाई विट्ठलनाथ भगवान के बाल रूप के साथ बातें करते थे और खेला भी करते थे. विट्ठलनाथ बालकृष्ण भगवान को ‘लाला’ कहते थे और कृष्ण उन्हें जय जय कहा करते थे. भक्ति की धारा प्रेम और समर्पण युक्त होती है. इसलिए जब हम बीमार होते हैं तो भगवान भी बीमार क्यों नहीं हो सकते. भगवान भक्त के वश में रहते है. भक्त चाहे काढ़ा पिलाए या पंच पकवान खिलाए, भगवान को सब चलता है. यही भक्त और भगवान के बीच का अपनत्व भरा रिश्ता है.