आलोचना कर अपना कद बढ़ाते लोग

    Loading

    जब बौना आसमान छूना चाहता है तो व्यर्थ की उछल कूद करने से बाज नहीं आता. उसकी इस तरह की हरकत उसे हास्यास्पद बना देती है फिर बौने को सूझता है कि इस तरीके से काम नहीं बनेगा बल्कि किसी बड़े व्यक्ति से टकराना होगा तभी वह चर्चा में आ पाएगा. जिस तरह फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ (Chennai Express) में शाहरुख खान 7 फुट ऊंचे भंगबली से उछल-उछल कर लड़ता है, कुछ वैसा ही करना पड़ेगा. जब बात राजनीति  (Indian politics) के अखाड़े की होती है तो छोटे लोग नामी शख्सियतों की आलोचना कर अपना कद बढ़ाने की फिराक में रहते हैं. किसी चर्चित प्रसिद्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति को निशाने पर लो, उस पर कीचड़ उछालो तो अपना भी नाम आसानी से हो जाता है.

    मीडिया पब्लिसिटी देता है. कोई भी बड़ा आदमी एकदम परफेक्ट नहीं होता. उसकी किसी कमजोर कड़ी को पकड़ो और भिड़ जाओ. आसमान की ओर देखकर थूकने वालों की कमी नहीं रहती. वे यह नहीं सोचते कि थूक उनके मुंह पर ही गिरेगा. यह सिलसिला काफी पुराना है. रामराज्य के दौरान भी एक अदने से व्यक्ति ने उलाहना दिया था जिसकी सूचना गुप्तचरों से मिलने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने  उसे पंडित करना तो दूर बल्कि अपनी महारानी सीता को वनवास भेज दिया जहां वे महर्षि वाल्मिकी के आश्रम में रहीं. राम ने अलोचना की आलोचना का  संज्ञान लिया. महाभारत में शल्य ने कर्ण जैसे महारथी का सारथी बनने के बावजूद उस जैसे परमवीर की लगातार आलोचना की और कहता रहा कि अर्जुन के मुकाबले तुम कुछ भी नहीं हो. इस तरह हतोत्सहित या डिमांरलाइज करने का काम किया. आज भी ऐसे लोग हैं जो बगैर सोचे-समझे किसी की भी आलोचना करते हैं जिसे क्रिकेट का ‘क’ नहीं आता वह भी किसी नामी खिलाड़ी के आउट होने पर कहता है- इसे खेलना नहीं आता. दुनिया की यही रीति है. छोटे-मोटे आलोचक कहां नहीं हैं. कहावत है- हाथी चला बाजार, कुत्ते भूंकें हजार.