जब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का जज 65 वर्ष की आयु तक सक्रिय रूप से काम कर सकता है तो हाईकोर्ट (High Court) का जज 62 वर्ष की उम्र में क्यों रिटायर होना चाहिए? न्यायदान का काम तो दोनों ही करते हैं, फिर अवकाश प्राप्ति की उम्र में ऐसी असमानता रखने का औचित्य क्या है? इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जजों (Judges) की रिटायरमेंट उम्र एक समान करने की मांग की है.
इस मांग को लेकर उपाध्याय लंबे समय से प्रयत्नशील हैं. 2010 में एक विधेयक पेश कर ऐसी मांग की गई थी लेकिन 2014 में वह बिल लैप्स हो गया. उपाध्याय ने 22 जून 2019 को तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) को भी इस संबंध में पत्र लिखा था. उनकी मांग है कि हाईकोर्ट की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि जजों की रिटायरमेंट एज 65 वर्ष कर दी जाए ताकि वे सुप्रीमकोर्ट जाने की उम्मीद के बिना ही हाईकोर्ट में 65 वर्ष की आयु तक काम कर सकें. हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों की रिटायरमेंट आयु एक समान किए जाने से हाईकोर्ट को अनुभवी जजों का और 3 वर्षों तक लाभ मिलेगा. जजों की कमी से मामले भी पेंडिंग नहीं रहेंगे. समान कार्य के लिए समान निवृत्ति आयु की मांग करना तर्कसंगत है.