आज डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस, जानें इस दिन का महत्व

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भारतीय संविधान के निर्माता, समाज सुधारक डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की आज पुण्यतिथि। बाबा साहेब अंबेडकर का महापरिनिर्वाण (निधन) छह दिसंबर 1956 को हुआ। डॉ. अंबेडकर ने जातिवाद को खत्म करने के लिए बहुत आंदोलन किए। उन्‍होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए अर्पित किया। इसलिए आज के दिन उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 

डॉ. आंबेडकर एक बौद्ध गुरु थे, इसलिए उनकी पुण्यतिथि के लिए बौद्ध अवधारणा में ‘महापरिनिर्वाण’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर पूरे भारत के लाखों लोग 1 दिसंबर से मुंबई में चैत्यभूमि उनकी समाधि पर आते हैं। चैत्यभूमि पर 25 लाख से अधिक भीम अनुयायी इकट्ठा होते हैं और चैत्यभूमि स्तूप में रखे आंबेडकर के अस्थिकलश और प्रतिमा को श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन भारत और दुनिया भर से आंबेडकरवादी उनकी प्रतिमा के सामने श्रद्धांजलि देते हैं। तो आइए जानते है इस दिन का महत्व… 

यद दिन महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर क्यों मनाया जाता है?  

दलितों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। छूआछूत जैसी प्रथा को खत्म करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इसलिए उनको बौद्ध गुरु माना जाता है। उनके अनुयायियों का मानना है कि, उनके गुरु भगवान बुद्ध की तरह ही काफी प्रभावी और सदाचारी थे। उनका मानना है कि, डॉ. आंबेडकर अपने कार्यों की वजह से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। यही वजह है कि उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस या महापरिनिर्वाण दिन के तौर पर मनाया जाता है।  

क्या है परिनिर्वाण?

बौद्ध धर्म के अनुसार, “जो निर्वाण प्राप्त करता है वह संसारिक इच्छाओं और जीवन की पीड़ा से मुक्त होगा और वह जीवन चक्र से मुक्त होगा यानी वह बार-बार जन्म नहीं लेगा।” परिनिर्वाण बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों और लक्ष्यों में से एक है। इसका वस्तुत: मतलब ‘मौत के बाद निर्वाण’ है। 

कैसे प्राप्त किया जाता है निर्वाण?

कहा जाता है कि, निर्वाण हासिल करना बहुत मुश्किल है। इसके लिए सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन जीना होता है। 80 साल की आयु में भगवान बुद्ध के निधन को असल ‘महापरिनिर्वाण’ कहा गया। 

डॉ. बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कई साल बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था। उसके बाद उन्होंने 14 अक्टूबर, 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था। उस समय उनके साथ करीब 5 लाख समर्थक बौद्ध धर्म में शामिल हो गए थे।  

उनका अंतिम संस्कार कहा हुआ?

उनके पार्थिव अवशेष का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक मुंबई की दादर चौपाटी पर हुआ। जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया, उसक जगह को अब चैत्य भूमि के तौर पर जाना जाता है।  

कैसे मनाते हैं महापरिनिर्वाण दिवस?

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायी और अन्य भारतीय इस मौके पर चैत्य भूमि जाते हैं और भारतीय संविधान के निर्माता को श्रद्धांजलि देते है।