बोरगांव बांध पर प्रवासी पक्षी ट्रम्पेटर का डेरा, फोटोग्राफर व युवकों ने कैमरे में कैद किया

Loading

अमरावती. शहर के समीप बोरगांव बांध पर प्रवासी पक्षी ट्रम्पेटर का दिखाई देना आश्चर्यजनक है. शहर के कुछ फोटोग्राफर और युवकों ने अपने कैमरे में कैद भी किया है. अभिमन्यु अराध्य, प्रशांत निकम पाटिल, वैभव दलाल और मनोज बिंड ने  सितंबर महीने में अमरावती शहर के पास बोरगांव बांध पर उलटी चोंच वाली तुतारी नामक पक्षी की खोज की. उक्त पक्षी की स्पष्ट तस्वीरें भी खींची गई है.

पक्षी का भोजन है कीड़े-मकोड़े

यह पक्षी मुख्यतः तटीय क्षेत्रों में शीतकालीन प्रवास पर भारत आता है. इसका सैंडपाइपर, जिसका वैज्ञानिक नाम जेनस सिनारियस है. अंग्रेजी नाम चिखल पक्षीय टेरेक सैंडपाइपर है. इस पक्षी का नाम इसकी विशिष्ट विशेषता के कारण पड़ा है, यह इसकी तुरही के आकार की चोंच है, जो ऊपर और नीचे की ओर झुकती है. लगभग 24 से 25 सेमी. इस लंबे पक्षी की पीठ हल्के भूरे रंग की होती है. पेट सफेद है और पैर पीले-नारंगी रंग के हैं. इसका भोजन समुद्र के किनारे, जलाशयों के किनारे पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े हैं.

सर्दियों की शुरुआत में यह पक्षी भारत के पूर्वी, पश्चिमी तट और अंडमान निकोबार की ओर प्रवास करता है. गर्मियों की शुरुआत में भारत से वापसी यात्रा के दौरान यानी साइबेरिया और फ़िनलैंड में प्रजनन के मौसम में लौटते समय, वे मध्य भारत में किसी स्थान पर अस्थायी पड़ाव बनाते हैं. उसी वापसी यात्रा के दौरान अमरावती जिले के वरुड और यवतमाल में कुछ क्षेत्रों में दिखाई दी है. लेकिन वो सारे रिकॉर्ड गर्मियों के हैं. शीतकालीन प्रवास की शुरुआत में ऐसा रिकॉर्ड आश्चर्यजनक माना जा रहा है.

छोटा चिखल्या जैसा पक्षी, जो विदर्भ में नियमित रूप से आता है, भले ही सर्दी अभी पर्याप्त रूप से शुरू नहीं हुई है, इस बार अपने प्रत्यक्ष प्रजनन के मौसम के रंगीन पंखों के कुछ संकेत के साथ आया हुआ देखा गया था. इसके अलावा, मेलघाट को छोड़कर लगभग 10 वर्षों के बाद पहली बार अमरावती शहर के पास के क्षेत्र में लाल पंखों वाला चातक (चेस्टनट पंखों वाला कोयल) भी इसी महीने में पाया गया था.

इसीलिए इसकी जानकारी रखने वाले ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि सितंबर माह की शुरुआत में अमरावती में ट्रम्पेटर पक्षी का यह अनोखा रिकॉर्ड पक्षी-अध्ययन और अवलोकन की चाहत है या वैश्विक जलवायु में चल रहे बदलाव का दुष्प्रभाव है. अनुमान है कि इस साल सितंबर-अक्टूबर से अप्रैल-मई तक की पूरी प्रवास अवधि के दौरान विदर्भ में ऐसे कई अप्रत्याशित और दुर्लभ पक्षियों के रिकॉर्ड दर्ज हो सकते हैं.