Atul Save

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    औरंगाबाद : मध्य प्रदेश सरकार (Government of Madhya Pradesh) ने ओबीसी समुदाय (OBC Community) का इम्पिरिकल डेटा (Imperical Data)  4 महीने में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सौंप दिया। तकनीकी समस्या के कारण मध्य प्रदेश में बिना आरक्षण के चुनाव कराना पड़ रहा है। हालांकि, महाराष्ट्र सरकार (Government of Maharashtra) ने दिसंबर 2019 से इम्पिरिकल डेटा जमा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। मध्य प्रदेश का उदाहरण देने के बजाए  ठाकरे सरकार (Thackeray Government) ने ओबीसी आरक्षण के लिए क्या किया इसका हिसाब दे। यह अपील भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव और विधायक अतुल सावे (State Secretary and MLA  Atul Save) ने राज्य सरकार से की। मध्य प्रदेश सरकार ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दायर करने की घोषणा की है, जबकि ठाकरे सरकार दो साल से पैंतरेबाज़ी (Maneuver) कर रही है। इसलिए मध्य प्रदेश में आरक्षण के परिणाम से पीठों को विभाजित करने के बजाय महाराष्ट्र में ओबीसी के आरक्षण के मुद्दे को हल किया जाना चाहिए। इस बात पर बीजेपी प्रदेश सचिव सावे ने जोर दिया। 

    जैसा कि मध्य प्रदेश में आरक्षण की वास्तविकता स्पष्ट होने से ना करता ठाकरे सरकार के खुशियों पर पानी फिरेंगा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ठाकरे सरकार मध्य प्रदेश में आरक्षण के मुद्दे पर ठाकरे सरकार अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश कर रही है। वहां के ओबीसी समाज ने आरक्षण गंवाने की खुशी ठाकरे सरकार छिपा नहीं सकती। उससे ही ओबीसी आरक्षण को लेकर ठाकरे सरकार की नियत का पता चलता है। 

    ठाकरे सरकार इम्पिरिकल डेटा में उलझी हुई

    उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद बीजेपी ने 27 फीसदी सीटों पर उम्मीदवार उतारकर महाराष्ट्र में ओबीसी को राजनीतिक न्याय दिलाने में अपनी भूमिका की घोषणा की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण को पूरी तरह से रद्द नहीं किया है और प्रक्रिया को पूरा करने का अवसर बरकरार रखा है, लेकिन ठाकरे सरकार दो साल से उदासीन है। मध्य प्रदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राजनीतिक दलों को सामान्य सीटों पर ओबीसी को आंतरिक आरक्षण देने की अनुमति दी जानी चाहिए। लेकिन जब से ठाकरे सरकार इम्पिरिकल डेटा में उलझी हुई है, यह स्पष्ट हो गया है कि ठाकरे सरकार आंतरिक आरक्षण भी नहीं देना चाहता है।