AIMIM MP Sayed Imtiaz Jaleel
इम्तियाज जलील

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    औरंगाबाद : पिछले कई सालों से मराठवाड़ा (Marathwada) सहित खानदेश (Khandesh) के 13 जिलों के गरीब और जरुरत मंद मरीजों (Patients) के लिए वरदान साबित हुए सरकारी घाटी अस्पताल (Government Hospital) में कोरोना काल से जारी धांधलियों को मुंबई हाईकोर्ट (Mumbai High Court) के औरंगाबाद खंडपीठ ने काफी गंभिरता से लेकर रिक्त पदों को तत्काल भरने के आदेश दिए  है। सरकारी और घाटी अस्पताल प्रशासन के लापरवाही पर याचिका कर्ता और जिले के सांसद इम्तियाज जलील (MP Imtiaz Jaleel) ने कड़ी नाराजगी जताते हुए घाटी प्रशासन के कामकाज पर कई सवाल उठाए। 

    उन्होंने बताया कि कोरोना में बड़ी संख्या में हुई लोगों की जान गंवाने के बाद मैंने खुद होकर औरंगाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मैंने घाटी सहित राज्य भर के अस्पतालों में बड़ी संख्या में रिक्त पदों की विस्तृत जानकारी देकर उन्हें भरने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने के लिए आदेश देने की हाईकोर्ट से मांग की थी। याचिका में जारी सुनवाई के दरमियान सरकार ने डेढ़ साल बाद यह एफिडियूट दिया है कि सरकारी और निम सरकारी अस्पतालों के लिए 10 प्रतिशत भी रिक्त स्थानों को नहीं भरा गया। इस मामले को हाईकोर्ट ने गंभिरता से लेकर रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरने के आदेश दिए है। 

    बाहर से दवाईयां लाने हेतु मरीजों पर डाला जाता दबाव 

    सरकारी घाटी अस्पताल में हर साल करोड़ो रुपए की दवाइयां आती है। यहां गरीब और जरुरत मंद मरीज मुफ्त इलाज पाने की आस से औरंगाबाद पहुंचते है।  इसके बावजूद हर डॉक्टर मरीज और उनके रिश्तदारों को बाहर के निजी मेडिकल से दवाइयां लाने के लिए डिस्क्रिप्शन लिखकर देते है। यहीं कारण है कि गत 2 सालों में घाटी अस्पताल परिसर में 26 मेडिकल खुले है। उन मेडिकल धारकों के एजंट खुले आम अस्पताल परिसर में घूमकर मरीजों को दवाइयां उनके पास से ही लेने के लिए दबाव बनाते है। जलील ने आरोप लगाया कि इतनी बड़ी संख्या में मेडिकल इसलिए खुले है क्योंकि अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों की मिलीभगत से उन्हें धंधा मिल रहा है। डॉक्टरों और मेडिकल धारकों की मिलीभगत से गरीब पेशंट परेशान है। इन सारी स्थितियों से सांसद जलील ने खुद पैरवी करते हुए हाईकोर्ट को अवगत कराया। इस मामले में हाईकोर्ट ने घाटी अस्पताल प्रशासन और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। तब सरकार ने बड़ा ही हास्यास्पद जवाब देकर कंपनी से मिलने वाली दवाइयों का विवरण दिया पर यह नहीं बताया कि दवाइयों की किल्लत है। सरकार के जवाब को हाईकोर्ट ने गंभिरता से लेकर इस मामले में बदलाव नहीं किया गया तो वह खुद यह आदेश जारी करेंगा कि कोई भी डॉक्टर बाहर की दवा लाने के लिए डिस्क्रिप्शन नहीं दे। 

    डॉ. बेलापुरकर ने बिना अस्पताल पहुंचे डकारे लाखों रुपए 

    घाटी अस्पताल में हुए एक और धांधली को उजागर करते हुए सांसद जलील ने बताया कि डॉ. आशिष बेलापुरकर जो कार्डियो वेस्कल सर्जन है। बीते दो साल में उन्होंने घाटी अस्पताल में कदम भी नहीं रखा। इसके बावजूद उन्हें हर महीने 2 लाख 52 हजार रुपए वेतन अदा किया गया। उन्होंने गत दो सालों में एक भी मरीज पर ऑपरेशन नहीं किया। इसके बावजूद 60 लाख रुपए से अधिक वेतन उन पर लूटाया गया। इस मामले पर भी सांसद जलील ने खुद पैरवी करते हुए हाईकोर्ट के समक्ष उजागर करने पर हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभिरता से लेकर जांच के आदेश दिए थे। जांच में डॉ. बेलापुरकर और अस्पताल प्रशासन का स्टाफ दोषि पाया गया है। न्यायालय ने कहा है कि हम वेतन पर खर्च की हुई राशि उक्त डॉक्टर से वसूलेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. बेलापुरकर को बिना काम किए वेतन अदा करने के मामले में वहां के तत्कालीन डीन, अन्य अधिकारी शामिल थे। हाईकोर्ट ने इस मामले में डॉक्टर को पार्टी बनाने के आदेश दिए है। सांसद जलील ने बताया कि हमने सालों से सरकारी घाटी अस्पताल में जारी धांधलियों को उजागर किया है। अस्पताल की खस्ता हालत, गंदगी, सड़ी हुई एम्बुलेंस आदि से भी हाईकोर्ट को अवगत कराने की जानकारी सांसद जलील ने दी।