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क्या सच में शरद पवार हैं दुखी?

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नई दिल्ली/मुंबई: जहां एक तरफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) ने आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन समारोह (Ram Mandir ) में आमंत्रित नहीं किए जाने पर अपनी निराशा खुलकर व्यक्त की है। वहीं इस बाबत शरद पवार ने कहा कि राम मंदिर के उद्घाटन में उन्हें तो आमंत्रित नहीं किया गया है, लेकिन उनके पास कुछ और भी जगहें हैं, जहां उनकी आस्था है और वे वहां जाएंगे। हालाँकि उन्होंने BJP पर राम मंदिर के नाम पर राजनीति करने का भी आरोप जरुर लगाया है। लेकिन उन्हें खुशी है कि मंदिर बन रहा है, जिसके लिए कई लोगों ने योगदान दिया है।  

क्या सच में  ‘न्योता’ न मिलना कर गया दुखी

राम मंदिर उद्घाटन समारोह नें शरद पवार को न्योता न मिलना भले ही NCP और खुद पवार साहब को दुखी कर गया है। लेकिन इस बात पर भी सोचा जाए कि, मंदिर निर्माण को लेकर शरद पवार ने कभी भी कोई एक रुख नहीं अपनाया।  वे वक़्त के अनुसार इस मुद्दे को लेकर ‘पाले’ के दोनों तरफ आते जाते रहे। राम मंदिर निर्माण पर उन्होंने कभी भी अपना स्पष्ट रुख नहीं रखा। 

राम मंदिर निर्माण और पवार का रुख 

इतना ही नहीं राममंदिर निर्माण मुद्दे पर कभी उनकी ‘शिवसेना’, जो आज उनकी सहयोगी पार्टी है, उनसे भी इस मुद्दे पर विवाद हुआ।  बात करते हैं साल 2020 की जब अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर महाराष्ट्र की तत्कालीन महाविकास अघाड़ी सरकार में बयानबाजी तेज हो गई थी। दरअसल मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम में जाने को लेकर कहा था कि कुछ लोगों को लगता है कि मंदिर बनाने से देश में ‘कोरोना’ खत्म हो जाएगा। केंद्र सरकार को लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान से उबारने की चिंता करनी चाहिए। इस पर राउत ने कहा था कि कोरोना की लड़ाई सफेद कपड़े पहने डॉक्टर ही भगवान के आशीर्वाद से लड़ रहे हैं। डॉक्टरों के योगदान को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ने भी कबूल किया है।

मंदिर और मस्जिद दोनों ही चाहते हैं पवार 

इतना ही नहीं ‘पवार साहेब’ ‘राम मंदिर’ के साथ साथ अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लेकर भी अपनी बात रखी थी। दरअसल साल 2020 में ही उत्तरप्रदेश कार्यकर्ता सम्मेलन में पवार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर कहा था कि “जैसे मंदिर के लिए ट्रस्ट बना, वैसे ही मस्जिद के लिए भी बनायें जाएँ। देश सबका है और सरकार सबकी, सभी मजहब वालों की है।”

राम-रहीम दोनों के ही ‘वोट’ की दरकार 

अब इस बात को समझना होगा कि शरद पवार, जो अन्यथा एक जिम्मेदार विपक्षी नेता की छवि पेश करते हैं, हिंदू धार्मिक भावनाओं की बात आने पर वे अपनी पटरी से क्यों उतरते दीखते हैं? इसकी वजह है मुस्लिम वोट बैंक! दरअसल बीते कुछ सालों में शरद पवार ने खुद को सबसे बड़े मराठा नेता के रूप में स्थापित किया है। मराठा, एक अन्य उपजाति, ‘कुनबी’ के साथ मिलकर देश में सबसे बड़ा एकल जाति ब्लॉक बनाते हैं। ये मिलकर महाराष्ट्र की आबादी का 31% हैं। मराठा समुदाय सबसे बड़े कृषि और वाणिज्यिक भूमि बैंकों के धारक हैं। इसलिए महाराष्ट्र के ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण हिस्सों में वोट NCP को मिलते हैं।

लेकिन जब मुस्लिम वोट की बात आती है तो ‘कांग्रेस’ काफी आगे है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 38% मुसलमान किसी अन्य पार्टी की तुलना में कांग्रेस को पसंद करते हैं। ऐसे में पवार की हमेशा से ही चाहत रही है कि उन्हें ‘राष्ट्रीय नेता’ के रूप में पेश किया जाए, जो मुस्लिम वोटों और अनुमोदन के बिना ऐसा नहीं होने वाला है। ऐसे में वे मुस्लिम वर्ग में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश में रहते हैं। 

‘राष्ट्रीय नेता’ की तस्वीर बनाने में लगे पवार 

उदाहरण के लिए, शेखर गुप्ता के साथ कभी अपने हुए एक साक्षात्कार के दौरान, उन्होंने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि उन्होंने मुसलमानों को बचाने के लिए 1993 में ’12वें बम विस्फोट’ का आविष्कार किया था। जबकि तथ्य तो यह है कि जो भी 11 विस्फोट हुए वे इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा ही किए गए थे। उसी इंटरव्यू में उन्होंने फिर से स्वीकार किया कि 2006 में उन ट्रेनों में बम रखे गए थे, जिनका इस्तेमाल हिंदू यात्रा करने के लिए करते हैं।

इतना ही नहीं एक वीडियो में उनकी बेटी सुप्रिया सुले (जो अब उनकी राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी भी हैं) किस प्रकार बुर्का और तीन तलाक की प्रशंसा करती नजर आ रही हैं। हालांकि वह यहीं नहीं रुकती। वह हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित करने की भी पुरजोर वकालत करती हैं। विडियो में वह कहती हैं कि, कैसे उनकी मुलाकात बुर्का पहने किरण कुलकर्णी नाम की महिला से हुई, जो खुद PHD भी थी। यहां तक ​​कि उनकी दोनों बेटियां भी डॉक्टर हैं और बुर्का पहने हुए थीं। आप में से अधिकांश लोग जानते होंगे कि कुलकर्णी महाराष्ट्र में एक ‘ब्राह्मण’ उपनाम है। अब यह धर्मांतरण नहीं तो और कुछ नहीं हो सकता।  

राम मंदिर पर क्यों ‘डिफेंसिव मोड़’ पर रहे हैं पवार 

इस प्रकार देखा जाए तो NCP चीफ शरद पवार राम मंदिर मुद्दे पर पर हमेशा से ही ‘डिफेंसिव मोड’ पर रहे हैं।  ना ही वे इसे खुलकर स्वीकारते हैं और न ही वे इसके खिलाफ जाते हैं। देखा जाए तो शरद पवार का असली कौशल इस तथ्य में निहित है कि उन्होंने हिंदू विरोधी (कांग्रेस की तरह) होने का आरोप लगाए बिना चुपचाप मुसलमानों के बीच NCP की छवि को मजबूत रखने की कोशिश है। ऐसे में लाजमी है कि उनको राम मंदिर उद्घाटन समारोह में आमंत्रित नहीं करने पर वो फिर कोई एक नया राजनीतिक पैंतरा खेलें। वैसे भी वह साल 2024 की लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।