जिले की 94 स्कूलों में लटकेंगे ताले, आल इंग्लिश मीडियम स्कूल एसोसिएशन

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    भंडारा. आखिर जिस बात का डर था वह सच साबित हुई. करीब 2 हफ्ते पहले भंडारा स्थित माइंड आई इंटरनेशनल स्कूल के बंद होने की खबर में भंडारा शहर के 400 से लगभग अभिभावकों में खलबली मचा दी थी. स्कूल संचालक के बीमार होने एवं आर्थिक तंगी की वजह से स्कूल संचालकों ने स्कूल में ताला लगाने का निर्णय लिया था.

    इस बात को दो हफ्ते भी नहीं हुए हैं कि अब एक दो नहीं, बल्कि भंडारा जिले की 94 के करीब निजी अंग्रेजी स्कूलों ने घोषणा की है कि वे 1 जुलाई से स्कूल बंद करने जा रहे हैं. इस फैसले इस संबंध में शिक्षा विभाग को सूचित किया है कि वह आर्थिक तंगी के आगे विवश हैं. 

    स्कूल किराया, मेंटनेंस खर्च, आनलाइन एजुकेशन का खर्च, अन्य बुनियादी खर्च एवं शिक्षकों का वेतन देने में असमर्थ हैं. विद्यार्थियों से फीस नहीं मिल रही है. जिससे आमदनी एवं खर्च के बीच तालमेल बैठाना पूरी तरीके से मुश्किल हो चुका है. फलस्वरूप उनके सामने स्कूलों को ताला लगाने के अलावा अन्य कोई रास्ता शेष नहीं रह गया है.

    कोरोना की वजह से आई आर्थिक तंगी एवं अंग्रेजी स्कूलों के खिलाफ किया गया विषैला दुष्प्रचार का खामियाजा भुगत चुकी इन स्कूलों ने अंग्रेजी मीडियम स्कूल एसोसिएशन के बैनर तले शिक्षा विभाग को इस संबंध में सूचित किया है.

    इस संबंध में शिक्षा विभाग को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि सरकार की नकारात्मक नीति और अभिभावकों द्वारा स्कूल फीस नहीं देने की वजह से स्कूलों को चलाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन हो चुका है. ‘नो स्कूल- नो फीस’  के कारण वर्तमान स्थिति में अपने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को चलाना मुश्किल हो चुका है. 

    दुष्प्रचार से नहीं मिली फीस

    इस पत्र में आगे कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय ने फीस का भुगतान करने के लिए स्पष्ट निर्देश दिया था. सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार किया गया. फीस न देने के लिए प्रदूषित वातावरण फैलाया गया. इसमें शिक्षा अधिकारी, सत्ताधारी नेताओं ने अंग्रेजी स्कूलों के बारे में गुमराह किया. इस वजह से सभी अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों के लिए आर्थिक मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. 

    नहीं मिली फीस; कैसे चलाएंगे स्कूल

    पत्र में शिक्षा विभाग से सवाल किया गया है कि जब फीस नहीं मिल रही है. तो स्कूल कैसे चलाएंगे. सत्र 2019-2020 से स्कूल फीस लगभग नहीं मिली है. इसके बावजूद स्कूलों ने जैसे-तैसे स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन अब स्थिति को संभालना मुश्किल हो चुका है.

    खर्च के लिए पैसा कहां से लाएं

    शिक्षा विभाग से सवाल किया गया है कि लोगों को देनदारी, वाहन खरीदने के लिए लिया कर्ज, वाहन इंश्युरेंस, भवन कर, बिजली बिल, कर्मचारियों का वेतन, रखरखाव लागत के लिए पैसे कहां से लाएं . नतीजतन, भंडारा जिले की सभी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलें बंद करने के लिए मजबूर हैं.

    आनलाइन एजुकेशन दिया पर फीस नहीं मिली

    स्कूलों ने बताया कि मार्च-2020 से आनलाइन शिक्षा प्रदान की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी डिजिटल इंडिया को परिभाषित किया और सुझाव दिया कि स्कूलों को आनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षा जारी रखनी चाहिए. अंग्रेजी स्कूलों द्वारा इसका पालन किया गया. वास्तव में आनलाइन शिक्षा की लागत बहुत बड़ी है. साफ्टवेयर, हार्डवेयर, इंटरनेट डेटा आदि पर बड़ा खर्च हुआ है. आनलाइन शिक्षा लेने के बावजूद अभिभावकों ने फीस नहीं दी है.

    ‘नो-स्कूल-नो-फीस’ ने किया तबाह

    स्कूलों ने अपनी-अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि कुछ राजनीति से प्रेरित और महत्वाकांक्षी लोगों ने माता-पिता को गुमराह किया. स्कूल एवं अभिभावकों के बीच असंतोष पैदा कर दिया है कि आनलाइन शिक्षा शिक्षा नहीं है, ‘नो-स्कूल-नो-फीस’ का नारा प्रचारित किया गया. जिससे ईमानदारी से आनलाइन शिक्षा देने के बावजूद स्कूलों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है. 

    आरटीई का पैसा भी नहीं मिला 

    नो स्कूल, नो फीस के दुष्प्रचार से आर्थिक संकट में घिरी स्कूलें सरकार से भी नाराज हैं. इन स्कूलों ने बताया कि वे वर्ष 2012 से आरटीई के तहत बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही हैं, लेकिन उन्हें अब तक रिफंड नहीं मिला है.

    नहीं शुरू कर सकेंगे स्कूल

    इन स्कूलों ने बताया कि है कि अंग्रेजी स्कूल के प्रधानाध्यापक, शिक्षक, शिक्षण कर्मचारी बड़े आर्थिक संकट में हैं और कर्ज में हैं. स्कूलों के बंद होने से छात्रों की शिक्षा, स्टाफ की नौकरी और संस्थानों के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं. इन सवालों का सामना सरकार और शिक्षा विभाग को भी करना पड़ेगा. 

    नो स्कूल नो फीस का विषैला प्रचार,  शिक्षा विभाग का असहयोग, घृणित राजनीति एवं सामाजिक उपद्रव जारी रहता है तो वे 1 जुलाई 2021 से शुरू होने वाले शैक्षणिक वर्ष में स्कूल शुरू नहीं कर पाएंगे और अगर मजबूरी में शुरू भी कराया गया तो वित्तीय कठिनाइयों के कारण कुछ दिनों में स्कूल बंद करना होगा. 

    अभिभावक एवं सरकार जिम्मेदार

    वर्तमान स्थिति के लिए अभिभावकों का असहयोग और सरकार की नकारात्मक नीति को स्कूलों ने जिम्मेदार ठहराया है. इस पत्र की कापी जिलाधिकारी, जिप सीईओ, शिक्षा विभाग पुणे निदेशक, शिक्षा विभाग नागपुर उप निदेशक को भेजी गयी है. 

    बवाल मचना तय 

    अंग्रेजी स्कूल संचालकों ने इस विशेष बैठक की जानकारी मंगलवार को दी एवं जिप भवन में पहुंचकर जिप सीइओ को ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर जिलाधिकारी भी उपस्थित थे. बैठक में जिले की सभी अंग्रेजी मीडियम स्कूलों ने दो टूक बता दिया है कि अगर फीस नहीं मिलेगी तो वे स्कूल नहीं चला पाएंगे. जाहिर है कि स्कूल संगठन के इस निर्णय के बाद बवाल मचना तय है एवं इसकी गूंज मुंबई और दिल्ली तक जाएगी.

    यह स्कूलें हैं शामिल

    आर्थिक तंगी के अभाव में 1 जुलाई से शिक्षा नहीं देने का निर्णय लेने वाली स्कूलों में भंडारा तहसील की स्प्रिंग डेल स्कूल, सेंट पीटर्स स्कूल, महर्षि विद्या मंदिर, रायल पब्लिक स्कूल, प्राइड कान्व्हेंट, सेंट मेरी स्कूल, पोदार इंटरनेशनल, स्कूल आफ स्कालर्स, लार्डस पब्लिक स्कूल, ड्रीम डेल स्कूल, प्रोग्रेसिव स्कूल,  लाखनी परिसर की यूनिवर्सल स्कूल, लिटिल फ्लावर स्कूल, एमडीएम फ्यूचर स्कूल, पवनी परिसर की मनोसुमन स्कूल, शांतलवार पब्लिक स्कूल, तुमसर परिसर की एसएनएस, महर्षि विद्या मंदिर, सेंट जान स्कूल, मोहाड़ी परिसर की लोटस स्कूल, पारवताबाई मदनकर, निमल पब्लिक स्कूल, साकोली परिसर की स्काईवर्ड स्कूल, लाखांदूर परिसर की तरोने पब्लिक स्कूल एवं अन्य स्कूलों का समावेश है.