bus
Representational Pic

    Loading

    मानोरा. मानोरा को तहसील का दर्जा प्राप्त हुए 40 वर्ष बीत गए हैं. लेकिन अभी भी यह शहर एसटी बस डिपो से वंचित हैं. राज्य परिवहन निगम (रापनि) के नियमानुसार 25 कि.मी. के दायरे में दूसरा बस डिपो नहीं दिया जाता है लेकिन मानोरा शहर यह शहर मंगरुलपीर डिपो से 28 कि.मी.,  कारंजा डिपो से 33 कि.मी. की दूरी पर है. फिर भी मानोरा शहर को इस नियम का खामियाजा क्यों भुगतना पड़ रहा है, यह सवाल उठ रहा है.

    हालांकि प्रतिदिन हजारों यात्रियों की आवाजाही मानोरा से होती है. तहसील में शिक्षा के लिए आने वाले पास धारक और अन्य विद्यार्थियों की संख्या हजारों की तादाद में है. सालाना करोड़ों का राजस्व रापनि को मानोरा बस स्टैंड से मिलता है. इसके बावजूद विगत कई सालों से की जा रही एसटी डिपो की मांग की अनदेखी की जा रही है. जिससे अवैध यातायात को भी बढ़ावा मिल रहा है.

    सुविधाओं का अभाव

    एसटी डिपो को तरस रहे मानोरा में केवल बस स्टैंड बना गया है. यहां भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. बस स्थानक परिसर में शौचालय तो है लेकिन केवल नाम के लिए बनाया गया है. शौचालय में पूरी गंदगी फैली हुई है. मानो ऐसा लगता है कि कई सालों से शौचालय की सफाई हुई नहीं है. महिलाओं को मानो असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. उसी प्रकार बस स्टैंड पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था जैसे मानो कई सालों से भंगार पड़ी हुई है.

    पेयजल की टंकी को ना नलों की व्यवस्था है और ना ही पेयजल टंकी की साफ सफाई की कोई व्यवस्था है. रात के समय पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था आदि का अभाव होने से सड़क छाप मजनू व असामाजिक तत्वों ने यहां अड्डा जमा लिया है. रात के समय किसी मार्ग की बस रद्द होने पर यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. रात के समय कम से कम एक तो भी सुरक्षा गार्ड की आवश्यकता बस स्थानक पर होनी चाहिए, ऐसी मांग यात्रियों द्वारा की जाती है.

    डायरेक्ट बसें नहीं

    सन 1981 में मानोरा को तहसील दर्जा प्राप्त हुआ है. इस तहसील में 110 गांवों का समावेश हैं. वाशिम जिले में मानोरा को यवतमाल जिले का प्रवेश द्वार कहा जाता है. मानोरा शहर से जिला कहे जाने वाले वाशिम शहर को जाने के लिए डायरेक्ट एक भी एसटी बस की व्यवस्था नहीं है. कुछ वर्षों पूर्व मानोरा से होते हुए नागपुर, पुणे, शिर्डी, कल्याण के लिए बसे चलती थी. लेकिन आज यह सभी बसें बंद हो चुकी है.

    यात्रियों का कहना है कि यहां से वाशिम, अमरावती, पुणे, औरंगाबाद, शिर्डी, जलगांव, नांदेड आदि शहरों में जाने के लिए डायरेक्ट टाइमिंग अथवा बसें नहीं होने से कई तरह की परेशानियां यात्रियों को सहनी पड़ रही है. यात्रियों की मांग के अनुसार एसटी बसों को जल्द से जल्द शुरू करने की मांग की जा रही है. और तो और अवैध यात्री यातायात वाले खुलेआम बस स्थानक पर अपनी गाड़ियां भरते नजर आते जिससे रापनि का करोड़ों रूपयों का राजस्व डूब रहा है. 

    बस स्टैंड पर पुलिस सुरक्षा नहीं

    हालांकि मानव विकास अंतर्गत 6 बस गाड़ियां ग्रामीण इलाकों से चलती है. प्रत्येक बस गाड़ी में 70 से 80 विद्यार्थियों का रोज आवागमन होता है. हजारों की तादाद में बस स्टेशन पर यात्रियों का भी आवागमन जारी है. कंट्रोल रूम की ओर से कई बार कम से कम एक पुलिस कर्मी की ड्यूटी लगाने की मांग की गयी है. लेकिन इस ओर भी अनदेखी की जा रही है. जिससे बस स्टैंड परिसर में असामाजिक तत्व बढ़ते नजर आ रहे हैं. जिसकी परेशानी महिलाओं, छात्राओं को अधिक हो रही है. 

    पूछताछ के लिए चाहिए दो अधिकारी

    कंट्रोल रूम का पूछताछ केंद्र सुबह 10 बजे खुलता है और शाम 5 बजे बंद हो जाता है. यहां एक ही अधिकारी होने की वजह से वह अपनी ड्यूटी बंद कर शाम में निकल जाता है 5 बजे के बाद में किस से पूछताछ करें यह सवाल यात्रियों द्वारा किया जा रहा है.

    राजनीतिक अनास्था

    इस बस स्थानक को डिपो का दर्जा देने की मांग कई सालों से की जा रही है. लेकिन राजनीतिक अनास्था के चलते इस मांग की अनदेखी हुई है. इन 20 वर्षों में राज्य में और स्थानीय स्तर पर विभिन्न राजनीतिक दलों की सत्ता रही है. लेकिन किसी दल ने इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया है. अब तहसील क्षेत्र तथा शहर वासियों की मांग को देखते हुए क्षेत्र में आने वाले सांसद तथा पार्षद ने इस समस्या को गंभीर लेते हुए बस डिपो बनाने की मांग को पूरा करने की बात कही जा रही है.