- अधर में लटकी निलामी प्रक्रिया
गडचिरोली. वनसंपन्न गडचिरोली जिले में रोजगार के अवसर बेहद कम है. ऐसे में धुपकाले के सीजन में ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्र के तेंदुपत्ता संकलन पर निर्भर रहते है. तेंदुपत्ता संकलन से जिले के ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्र को व्यापक आय प्राप्त होती है. इसी रोजगार पर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का आगामी बजट भी तय होता है. मात्र इस वर्ष कोरोना महामारी के दुसरे लहर के चलते तेंदुपत्ता संकलन पर संकटों के बादल नजर आ रहे है. आदिवासी बहुल जिला होने के चलते पेसा कानुन के तहत ग्रामसभा को वनाधिकार मिला है. जिससे चलते जिले के अनेक गांवों में ग्रामसभा द्वारा तेंदुपत्ता संकलन किया जाता है.
तेंदुपत्ता संकलन हेतु ग्रामसभा की प्रक्रिया भी प्रारंभ की गई थी. जिसके तहत अनेक ग्रामसभा ने विज्ञापन देकर तेंदुपत्ता निलामी भी आयोजित की गई थी. मात्र आवश्यक दाम नहीं मिलने के कारण तेंदुपत्ता की निलामी नहीं हो पायी. अब कोरोना महामारी के चलते निलामी की प्रक्रिया अधर में लटकी है. निलामी ही नहीं होने से तेंदुपत्ता संकलन कैसे होगा ऐसा सवाल उठाया जा रहा है. जिससे इस वर्ष हजारों मजदूरों से यह रोजगार छिनने की संभावना व्यक्त हो रही है. जिससे मजदूरों में चिंता के बादल निर्माण हुए है.
तेंदुपत्ता पर ही निर्भर खरीफ सीजन
जिले का ग्रामीण जीवन खेतीबाडी तथा वनों से प्राप्त गौण उपज पर निर्भर है. जिले में खरीफ सीजन में किसान धान फसलों का उत्पादन लेते है. खरीफ सीजन के पूर्व धुपकाले में तेंदुपत्ता के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को व्यापक आय मिलती है. तेंदुपत्ता से प्राप्त आय पर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर आगामी एक वर्ष का बजट तय करते है.
यहां तक की अनेक किसान खरीफ सीजन में खेती के लिए आवश्यक खाद, बीज, किटनाशक, रोपाई की मजदूरी का खर्च भी तेंदूपत्ता से प्राप्त आय से व्यय करते है. ऐसे में अनेक किसानों का खरीफ सीजन तेंदुपत्ता के भरोसे ही निर्भर रहता है. मात्र इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण तेंदुपत्ता संकलन पर संकटों के बादल होने से किसानों की मुश्किले बढ गई है.
1 माह मिलता है रोजगार
जिले के जंगल से उचे दर्जे का तथा प्रचूर मात्रा में तेंदुपत्ता प्राप्त होता है. जिस कारण बाहरी जिले, राज्य के ठेकेदार यहीं का तेंदुपत्ता पसंद करते है. जिससे प्रति वर्ष तेंदुपत्ता निलामी में सहभाग लेते है. पेसा कानुन के तहत सरकार ने ग्रामसभा को तेंदुपत्ता संकलन के अधिकार दिए है. तेंदुपत्ता सीजन के माध्यम से ग्रामसभाएं मालामाल हो रही है.
इस माध्यम से मिलनेवाली राशी गांव के विकास में खर्च की जा रही है. जिससे अनेक गांव संपन्नता की ओर बढे है. तेंदुपत्ता संकलन का सीजन 1 माह तक रहता है. करीब अप्रैल के अंत से तेंदुपत्ता संकलन शुरू हो जाता है. इस माध्यम से मजदूरों को माहभर रोजगार प्राप्त होता है. जिससे मजदूर तेंदुपत्ता संकलन आंस लगाएं रहते है. मात्र इस वर्ष कोरोना के चलते तेंदुपत्ता संकलन अधर में लटका है.
ग्रामसभाओं का नुकसान
इस वर्ष ग्रामसभाओं ने तेंदुपत्ता सीजन की व्यापक तैयारीयां की थी. जिसके तहत ग्रामसभाओं द्वारा अखबारों में विज्ञापन देकर निलामी आयोजित की थी. मात्र निलामी में उचित दाम नहीं मिलने से निलामी की तारीख आगे बढाई गई थी. ग्रामसभाएं तेंदुपत्ता को उचित दाम मिलने के प्रतिक्षा में थे, ऐसे में कोरोना महामारी ने ग्रामसभाओं के नियोजन पर पानी फेर दिया. जिससे निलामी की प्रक्रिया अबतक पूर्ण नहीं हो पायी है. जिससे ग्रामसभाओं का व्यापक नुकसान हुआ है.