Why there is no regulatory body to regulate TV news: High Court

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    मुंबई. बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा है कि एक बेटी अपने पिता की दूसरी शादी (Father’s Second Marriage) की वैधता को अदालत में चुनौती दे सकती है। न्यायमूर्ति आर डी धनुका और न्यायमूर्ति वी जी बिष्ट की पीठ ने बुधवार को यह फैसला सुनाते हुए 66 वर्षीय उस महिला की याचिका स्वीकार कर ली, जिन्होंने परिवार अदालत के एक आदेश को चुनौती दी थी। दरअसल, परिवार अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि वैवाहिक संबंध के सिर्फ पक्षकार ही शादी की वैधता को चुनौती दे सकते हैं।

    फैसले के मुताबिक, महिला ने अपने (दिवंगत) पिता की दूसरी शादी की वैधता को चुनौती देते हुए 2016 में परिवार अदालत में एक याचिका दायर की थी। महिला ने याचिका में कहा कि उसके पिता ने उसकी मां की 2003 में मृत्यु हो जाने के बाद दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन उसके पिता की मृत्यु हो जाने पर 2016 में उसे पता चला कि उसकी सौतेली मां ने अपनी पिछली शादी से तलाक को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया है।

    महिला ने याचिका में कहा कि इसलिए उसके पिता की दूसरी शादी को वैध नहीं माना जा सकता है। हालांकि, महिला की सौतेली मां ने परिवार अदालत में दलील दी कि याचिकाकर्ता का इस विषय में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वैवाहिक संबंध में सिर्फ दो पक्ष (पति और पत्नी) ही ऐसे होते हैं, जो इसकी वैधता को अदालत में चुनौती दे सकते हैं।

    हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उस महिला के तलाक के बारे में सच्चाई का पता लगाया और उसने यह पता चलने के शीघ्र बाद परिवार अदालत का रुख किया था।

    अदालत ने कहा कि चूंकि उसके पिता की मृत्यु हो गई है, इसलिए असंगत तथ्य को उसे ही सामने लाना था और इस तरह की शादी की वैधता को चुनौती देनी थी। पीठ ने कहा कि परिवार अदालत अपने फैसले में गलत थी। उच्च न्यायालय ने याचिका पर नये सिरे से फैसला करने के लिए उसे परिवार अदालत के पास वापस भेज दिया। (एजेंसी)