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नई दिल्ली/वर्धा: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) की आहट के पहले, आज महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिले वर्धा (Wardha) की बात करते हैं, जो लोकसभा सीट भी है। दोस्तों, वर्धा ही वो जगह है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आश्रम है। इसके साथ-साथ यहां से वर्धा नदी भी गुजरती है। भूगोलिक स्तिथि देखें तो यह जिला सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के काफी नजदीक भी है जिसकी वजह से यहां का नजारा बिल्कुल अलग ही है। यह भी बताएं कि, वर्धा में ही विश्व शांति स्तूप भी है जो कि पर्यटकों का मुख्य केंद्र भी है। इतना ही नहीं, इसी जिले में सूती कपड़ों की कई सारी मिलें भी हैं। वहीं यह कई बड़े शैक्षिक संस्थानों में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय बहुत प्रमुख हैं।

वर्धा और यहां के मतदाता
जानकारी दें कि, वर्धा लोकसभा सीट महाराष्ट्र के 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है और बहुत ही महत्वपूर्ण सीट है। वर्तमान में यहां 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। उनमें से 8,48,752 पुरुष वोटर हैं। यहां महिला मतदाताओं की संख्या 8,94,513 हैं। वहीं थर्ड जेंडर के मतदाता फिलहाल 18 हैं। यहां 2019 में कुल वोटरों की संख्या 10,72,570 थी। जिनमें से कुल पुरुष मतदाता 5,73,147 और महिला मतदाता 4,94,005 थीं। वहीं 2019 में इस जिले का कुल मतदान प्रतिशत 61।53% रहा था।

जानें 2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़े

वर्धा की पुरुष मतदाता की संख्या- 894513
वर्धा की महिला मतदाता की संख्या- 848752
वर्धा की कुल मतदाता की संख्या- 1743283

वर्धा का राजनीतिक परिदृश्य
देखा जाए तो आजादी के बाद करीब तीन दशक तक वर्धा की यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। श्रीराम नारायण अग्रवाल यहां से पहली बार सांसद बने थे। उसके बाद क्रमश: कमलनयन बजाज, जगजीवन राव कदम, संतोषराव गोडे और वसंत साठे यहां से कांग्रेस की तरफ से सांसद रहे। लेकिन फिर 1991 में इस सीट पर सियासी समीकरण बदले और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के रामचंद्र घंगारे यहां से सांसद निर्वाचित हुए और देखेत ही देखते कांग्रेस के हाथ से यह सीट फिसल गई।

बदलता रहा वर्धा का सांसद
अब राजनीति तो खैर बदलती रहती है, यहं भी यही हुआ, साल 1996 में बीजेपी के टिकट पर विजय मुंडे, 1998 में कांग्रेस के दत्ता मेघे और 1999 में कांग्रेस के ही प्रभा राऊ सांसद बने। लेकिन फिर साल 2004 में इस सीट पर एक बार फिर से BJPने कब्ज़ा जमाया और सुरेश वाघमारे सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन फिर बदलाव! साल 2009 में सीट फिर से कांग्रेस की झोली में चली गई और दत्ता मेघे यहां से दूसरी बार सांसद बन गए। साल 2014 और 2019 में ‘मोदी’ लहर के बीच इस सीट पर BJP की वापसी हुई और दोनों बार ही रामदास तड़स यहाँ से सांसद निर्वाचित हुए।

वर्धा का जातीय समीकरण
अब इस सीट की अगर जातीय समीकरण की बात करें तो, वर्धा में SC वोटरों की अच्छी खासी तादाद है। उसके बाद दूसरे नंबर पर यहां के ST वोटर हैं। वहीं तीसरे नंबर पर यहां मुस्लिम वोटर हैं। इस क्षेत्र की अधिकतर जनसंख्या गांवों में निवास करती हैं।