Pune Police action in Maharashtra phone tapping case FIR registered against IPS officer Rashmi Shukla
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    मुंबई: वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ला (IPS Rashmi Shukla) पर मुकदमा चलाने वाले कोलाबा पुलिस (Colaba Police) के प्रस्ताव को राज्य सरकार ने ख़ारिज करते हुए शुक्ला को बड़ी राहत दी है। यह फैसला पुणे पुलिस (Pune Police) द्वारा शुक्ला के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के कुछ दिनों बाद आया है। जिसमें शुक्ला पर कुछ प्रमुख राजनेताओं के फोन को अवैध रूप से टैप करने का आरोप लगाया गया था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की है कि सरकार ने मंजूरी को खारिज कर दिया है।

    कोलाबा पुलिस ने मार्च में रश्मि शुक्ला के खिलाफ एनसीपी के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे और शिवसेना नेता संजय राउत की फोन पर हुई बातचीत को कथित तौर पर टैप करने का मामला दर्ज किया था। अप्रैल में जांचकर्ताओं ने शुक्ला के खिलाफ 750 पन्नों का आरोप पत्र भी दायर किया था। 

    चार्जशीट में 18 गवाहों के बयान दर्ज थे

    कोलाबा पुलिस की चार्जशीट में 18 गवाहों के बयान और अन्य दस्तावेजी सबूत शामिल थे। मामले के गवाह खडसे, राउत, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव और अन्य कर्मी है, जिन्होंने शुक्ला के प्रभारी होने पर एसआईडी में काम किया था। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद पुलिस ने अदालत को पत्र लिखकर सूचित किया कि वे सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति चाहते हैं। राज्य में शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के तुरंत बाद एक नए जांच अधिकारी की नियुक्ति की थी।

    कोलाबा पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था केस

    शुक्ला के खिलाफ इस साल की शुरुआत में कोलाबा पुलिस स्टेशन में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त राजीव जैन की शिकायत के बाद भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज किया गया था। शुक्ला पर एनसीपी नेता एकनाथ खडसे और शिवसेना नेता संजय राउत के फोन नंबरों को निगरानी में रखने का आरोप लगाया गया था। कथित अवैध फोन टैपिंग तब हुई थी जब शुक्ला ने पिछली भाजपा-शिवसेना सरकार के शासन के दौरान राज्य खुफिया विभाग (एसआईडी) की हेड थी। 

    मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी जरुरी

    गौरतलब है कि सीआरपीसी की धारा 197 के प्रावधानों के अनुसार, लोकसेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी से एक मंजूरी की आवश्यकता होती है, यदि उनके द्वारा कथित रूप से किए गए किसी कार्य को सीधे उनके आधिकारिक कर्तव्य से संबंधित किया जाता है। मंजूरी देने वाले प्राधिकारी को यह तय करने के लिए कि क्या व्यक्ति पर मुकदमा चलाने की मंजूरी की सिफारिश की जा सकती है, उसके सामने रखी गई सभी सामग्री पर विचार करना आवश्यक है।